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सुग्रीव अपनी पत्नी और राज्य पाकर अपनी प्रतिज्ञा भूल गया। | इससे श्रीराम को दुख हुआ तब लक्ष्मण को क्रोध आगया। वह खड्ग लेकर सुग्रीव के पास पहुंचे। हे देव! मैं अपने पति के प्राणों की भिक्षा मांगती हूँ। इनका अपराध क्षमा करें।
सुग्रीव रत्नजटी को लेकर राम-लक्ष्मण के पास आया। उसने उन्हें भी सारी बात बताई ।
हे रत्नजटी ! रावण की वह लंकापुरी कहां
है ?
मुझे क्षमा करें प्रभु! मैं अपनी प्रतीज्ञा शीघ्र पूरी करूंगा।
जैन चित्रकथा
लवण समुद्र में राक्षस द्वीप प्रसिद्ध है।
उसमें त्रिकुटाचल पर्वत है। इसके शिखर पर लंकानगरी बसी है। रावण (के दो भाई विभीषण और कुंभकरण हैं।
सुग्रीव ने सब सेवकों को बुलाकर सीता की खोज के लिए भेजा। वह स्वयं भी इस कार्य के लिए चला जब वह महेन्द्र पर्वत पर आया। वहां उसे विद्याधर रत्नजटी मिला। वह घायल पड़ा था। हे रत्नजटी! तेरा यह हाल किसने किया ?
हे सुग्रीव ! दुष्ट रावण सीता को हर कर ले जा रहा था। सीता का विलाप मुझसे न देखा गया। मैने रावण को रोका उससे युद्ध किया किन्तु रावण की शक्ति के आगे मैं हार गया। उसने मेरी यह दशा कर दी।
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लक्ष्मण उसी समय जांबूनंद, सुग्रीव, नल, नील आदि के साथ चल पड़े। वे एक शिला के पास पहुंचे। तब जांबूनंद ने कहा। एक बार रावण ने अंनतवीर्य योगीन्द्र से तो लो, इस अपनी मृत्यु का हाल पूछा था। तब उन कोटिशिला को मैने मुनिराज ने कहा था कि जो इस उठा लिया। रावण कोटिशिला को उठा लेगा, वही तेरी की मृत्यु मेरे हाथों मृत्यु का कारण बनेगा । निश्चित है।
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