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________________ परिचय . श्रावक रन, श्रमण भक्त, विलक्षण, धार्मिक प्रवृत्ति में रत श्रीमान धन्नालालजी पाटनी समाधि में लीन हो गये। आपका जन्म 16 सितम्बर 1928 को इन्दौर में श्री मुन्नालालजी के घर आंगन में हुआ। आपका परिवार । । प्रतिष्ठित धर्मपरायण परिवार रहा है। - धर्मरत्न श्री धन्नालाल पाटनीजी सदैव साधना में रत रहते थे। रात्रि में 2.30 बजे से ही आपकी नित्य क्रिया - शुरु हो जाती थी। एकाग्रचित्त हो घंटो णमोकार मंत्र का जाप आदि करते थे। विभिन्न आसनों में ध्यान किया करते - थे। गुरुभक्ति आपके हृदय में कूट-कूट कर भरी थी। सभी गुरुदेव का आशीर्वाद आपको समय-समय पर प्राप्त होता । रहता था। सदगृहस्थ के समस्त गुण आप में विद्यमान थे। सरल, सौम्य एवं मिलनसार जीवन, उदारमना व स्पष्टभाषी । थे। ऐसे पड़ावश्यक पालक श्री पाटनीजी के घर में चैत्यालय की स्थापना आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के । करकमलों से हुई। आप परमपूज्य वात्सल्य रत्नाकर 108 आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज के परम भक्त थे।। आपने अपने गुरु की समाधि के पश्चात उनके शिष्य मर्यादा शिष्योत्तम आचार्य श्री भरत सागरजी महाराज से महान प्रसिद्धक्षेत्र, सम्मेद शिखरजी के स्वर्णभद्र कूट श्री पार्श्वनाथ के चरणों में सन् 1995 जनवरी माह में आगामी छः वर्ष पश्चात् निग्रन्थ दीक्षा ग्रहण करने का संकल्प लिया था। इसके पूर्व सन् 1986 में गोम्मटगिरी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में पधारे आचार्यश्री ने आपके घर में आपके हाथों से प्रथम ग्रास आहार ग्रहण कर व्रती भी बना दिया। 15 जनवरी । 11999 को अपनी पुत्री प्रभा से कहा फाल्गुन के पूर्व होते ही मैं शिखरजी गुरु चरणों में जाकर अपना जीवन सार्थक करूंगा। किन्तु प्रकृति का विधान कुछ और ही था। 3 फरवरी 1999 की शाम 6 बजे चारों प्रकार के आहार का त्याग किया। उस समय उन्होंने कंठ अवरुद्ध होने जैसे अनुभव किया - उन्हें जैसे आभास हो गया और चैत्यालय में जाकर जोर-जोर से 'अरहन्ता, अरहन्ता' पुकारते हुए चन्द क्षणों में, दिव्य ज्योति में विलीन हो गये। . आपका भरा-पुरा परिवार है, पत्नी कमलाबाई भी धार्मिक साधना में तत्पर है तथा सात पुत्रियां, एक पुत्र, दो पात्री एवं दो पौत्र हैं। सभी को उत्तम संस्कार प्राप्त हुए। एक पुत्री आर्यिका 105 स्याद्वादमती माताजी हैं जो सन्मार्ग दिवाकर 108 आचार्य श्री विमलसागरजी महाराज से दीक्षित हैं। अप्रतिम बुद्धि तथा विलक्षण व्यक्तित्व की साम्राज्ञी माताजी की कई कृतियां प्रकाशित हैं तथा लेखन और वक्तृत्व पर पूर्ण अधिकार है। पुत्री. ब्र. प्रभा पाटनी भी प्रखर व्यक्तित्व की धनी तथा साधओं की सेवा में रत रहती हैं। दोनों बहनें धर्म का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। उनके एकमात्र पुत्र प्रद्युम्न । । कुमार पाटनी श्रवणकुमार की तरह माता-पिता की सेवा कर रहे हैं जो वर्तमान में अपवाद स्वरूप हैं। अन्य सभी बहनें । । अपना गृहस्थ जीवन पूर्ण धर्ममय व्यतीत कर रही हैं। सबसे छोटी पुत्री डॉ. इन्दुबाला पाटनी ने आचार्य श्री - कुन्थुसागरजी महाराज के व्यक्तित्व एवं कर्तत्व पर शोधकार्य किया है एवं वरिष्ट व्याख्याता म.प्र. राज्य शैक्षिक अनुसंध न और प्रशिक्षण परिषद् भोपाल में कार्यरत है। ऐसे श्री धन्नालालजी पाटनी ने अपने अपने बच्चों को संस्कार दिये हैं। “ऐसे फूल बनो जिनकी महक बाद में भी बने रहे" तथा स्वयं श्री धर्ममय महक बिखेरकर समाधि में लीन हो गए।
SR No.033229
Book TitleKundkundacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabha Patni
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size7 MB
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