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कामवती नगर में भगवान शांतिनाथ के चैत्यालय में श्री दत्त नाम का एक मठपति था, जो इतना लोभी था कि भगवान के समक्ष चढ़ाया हुआ द्रव्य भी वह रखा जाता था। देवद्रव्य को खाने के पाप से अगले भव में,
गर्भ में ही था कि पिता सेठ भोगरति की मृत्यु हो गई और माता सेठानी भोगवती...
जो करे सो भरे
रेखांकन बनेसिंह
हाय रे विधाता! मेरे गर्भ में कैसा पापी जीव आया है मेरे पति को रखा गया और सारा धन नष्ट हो गया दरिद्रता ने डेरा जमा लिया।
मैं अब क्या करूँ, क्या न करूँ? 00000
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