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सम्पादकीय
जैन चित्रकथा आपके बच्चे को जैन संस्कृति से परिचित कराती है। इस पुस्तक की कथा आचार्य सकल कीर्ति जी द्वारा लिरिवत संस्कृतकाव्य धन्यकुमार चरित्र पर आधारित है। नई पीढ़ी को सही समझ और शिक्षा देने के लिए ऐसे विचार उनके समक्ष रखना जरूरी जिससे वे आदशकिी और प्रेरित हो और जीवन का सही रास्ता उन्हें मिल सके ! कहानी को पढ़नेसे ज्ञात होगा कि व्यक्ति लोभ बस या अज्ञानता बस अनर्थ कर जाताहै।
बेटा जश मेरे हाथ धुला देना! क्या बात है पिताजी, आपने केवलइस थैली में से पांच रूपये ही तो निकाले हैं फिर हाथक्यों घोते हैं! बेटा येधर्मादा के रूपये हैं। इसका अंश भी यदि घर में रह गया या अपने काम में लेआये तो न जाने क्या का क्या हो जाये।
फिर भगवान के समक्ष चढ़ाया हुआ द्रव्य या दान दिया हुआ द्रव्ययदि कोई खाता है, प्रयोगकरता है, उसे कितना पापबंध होता है,क्या-क्याफल भोगना पड़ता है, सर्वज्ञ देव ही जानते हैं या जानते हैं वे लोग जिन्हें भोगनापड़ा है। जो करे सो भर यह कृति आपके हाथ में है आइये देखिये देव दृष्य रवानेका फम धनकुमार के जीवने किस प्रकार भोगा क्या-क्या दुर्गति हुई उसकी, जीवन में पैसे-पैसे कोतरसा कैसी बीती उसकी जिन्दगी, बस वैसी ही जैसी गरीब की बीतती है और जब उसने अपने जीवन को मोड़ दिया,धर्म की ओर लक्ष्य दिया, जीवन ही बदल गया उसका । मिट्टी में भी हाथ डाला तो सोना निकला। यदि इस पुस्तक के पढ़ने से किसी एक को भी निश्चय होगया कि यदि में बुरा करूँगा तो बुरा होगा ओर उसने बुराई से हाथ खींच लियातोमेरा यह प्रयास सफल समदूंगा।।
धार्मिक आचरण राष्ट्रीय चरित्र को उन्नति देने वाला है। तथा हमें आचरण उसके अनुरूप बनाना होगा। तभी हमारा जीवन सफल होगा।
धर्मचन्द शास्त्री (परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य श्रीधर्म सागर जी संघस्थ)
प्रकाशक : आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला,"गोधा सदन"अलसीसरहाऊस,
संसारचन्द्र रोड़ जयपुर- 302001 सम्पादकः धर्म चन्द शास्त्री लेखक : डा. मूलचन्द जैन, मुजफ्फर नगर चित्रकार: बनेसिंह, जयपुर
प्रकाशन वर्ष: १४६
अंक : ५
मूल्य
:/0.00रू.