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________________ यह चिन्तवन कर अपना रूप फेर मंद पांव धरता हनुमान | |सो समीप बैठी वो नारी इसकी प्रसन्नता के समाचार रावण, आगे जाय श्रीरामकी मुद्रिका सीता के पास डारी, सो शीघ्र से कहा- उसने प्रसन्न होकर मंदोदरी को सीता के पास भेजा ही उसे देख रोमांच हो आया और कुछ मुख हर्षित हुआ। || मंदोदरी ने आकर सीता से कहा- नी हे बाले! आज तूं प्रसन्न हुई सुनी सो मेरे पति की वार्ता आई तुमने हम पर बड़ी कृपा की है। अब है। मेरे पति आनन्द से लोक का स्वामी रावण। उसे अंगीकार हैं, इसलिए मुझे हर्ष | कर जैसे देवलोक की लक्ष्मी इन्द्र हुआ है। को भजती है। हे भाई जो तब श्री हनुमान ने हाथ जोड़ कर विनती की- फिर मंदोदरी ने हनुमान से कहा - मेरे पति की | हे साध्वी! स्वर्ग विमान समान महलों में श्रीराम विराजे हैं। बड़ा आश्चर्य है कि तुं भुमि गोचरियों का मुद्रिका लाया। आपके विरह में कहीं भी उनका मन नहीं लग रहा है। गीत || दूत बन कर आया है। तुम राजा मयकी ह वह दशन | रागरंग कुछ भी उन्हें अच्छा नहीं लग रहा है। आपको देखने पुत्री और रावण की पटराणी! के निमित्त केवल प्राणों को धारण किये हुए हैं। दूती बन कर आई हो? जावो पति के महल में देवियों के सुख भोगो। उसे गलत कार्य करते मना नही करती हो? देवो। हनुमान के ये वचन सुन सीता आनन्द को प्राप्त हुई। फिर सजल नेत्र हो पूछा- हनुमान ने श्रीराम का सारा समाचार बताया। जैन चित्रकथा 23
SR No.033226
Book TitleJanak Nandini Sita
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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