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उत्तम मार्दव धर्म
जैन चित्रकथा सौधर्म स्वर्ग में इन्द्र दरबार... अहाहाहा। क्या रुप है उसकारकमाल का रूपादेवों में भी ऐसा रूप नहीं।
स्वामी, किसका रूप? कौन है वह महापुरूष,कहा रहता है वह? हम जायेगें उसे देखने।
वह है भारत क्षेत्र में रहने वाले साल अति सुन्दर चक्रवती सनत्कुमार
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अगले ही दिन दोदेव-मणिकेतुव रत्नचूल आ पहुंचे मनुष्यलोक में...Iसना है स्वर्ग से दो देव आये है मेरा रूप देखने। वाहाखूब। वाकई ऐसा रूप अब
वाकई में हं भी तो ऐसा ही। मेरे समान है भी कोई
ऐसा रूपवान अब चलूमा दरबार में खूब साजतक नहीं देखा जी चाहता है देखते ही रहें। जैसा इन्द्रराज ने कहा था
श्रंगार करके, बढ़िया वस्त्र, बढ़िया से बढ़िया अलंवास्तव मैं वैसा ही निकला। और
कार पहन कर देव देखेंगे तोदेखते रह
जायेंगे मेरे रूप को। हं भी तो मैं कमाल यह,न साज श्रंगार, न
ऐसा ही
सुन्दर! वस्त्र,न आभूषण, बल्कि धूल धूसरित शरीर चलें उनसे
TOOole मिल भी तो लें।
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