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________________ उत्तम सत्य धर्म] धर्म के लक्षण हो न हो यही सत्यघोष जी का मकान होना चहिये क्यों कि इसी मकान पर तो लिवा है "सत्यमेव जयते" सत्यमेव जयते व श्रीमान जी, (क्या आपका ही नाम) सत्यघोष है? Prode aand हां हां भैया मुझे ही सत्यघोष कहते है! पधारिये, कहिये आप कौन हैं। किस काम से आये हैं। दो वर्ष बाद... मेरा नाम समुद्रदन्त है। मुझे एक वर्ष के लियें विदेश जाना है। मेरे पास ये पांच रत्न हैं। आप इन्हें अपने पास रख लीजिये एक वर्ष बाद जब लौटूगां तब ले लूंगा। आपका बड़ा नाम सुना है। आप बड़ें सत्यवादी जो है। श्रीमान जी, गजब हो गया। मेरा सारा धन नष्ट हो गया। मैं बहुत परेशान हैं। कृपया मेरे पांच रत्न मुझे लौटा दीजिये जो मैं दो वर्ष पहले आपके पास रख गया था। कौन हो भाई तुम? मैंने तो तुम्हे पपहिचाना भी नही कैसे रत्न? कुछ पागल हो गये क्या? लांछन लगाते हो। नहीं आती|निकला जाओ यहां से झूठा 015 "भैया नाम वाम तो कुछ नहीं। हां मैं झूठ कभी नहीं बोलतादेखो मेरे जनेऊ में सदा यह चाकू बंधा रहता है। यदि मुंह से कभी झूठ वचन निकल गया तो चाकू से जीभ काट लूंगा! में इस चक्कर में तो नही पड़ता। परन्तु जब तुम जिद ही कर रहे हो तो रख जाओ।
SR No.033223
Book TitleDharm Ke Dash Lakshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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