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________________ एक दिन भगवान शीतलनाथ विहार के लिएवन में गये, तब सब वृक्ष हिम ओस पुत्र को राज्य सौंपकर देव निर्मित 'शुक्रप्रभा पालकी पर सवार होकर स्वयं से आच्छादित थे। पर थोड़ी ही देर बाद सूर्य का उदय होने पर वह ओस अपने सहेतुक वन में जा पहुंचे। दिगम्बर दीक्षा धारण कर ली। तपश्चरण करते हुए। आप नष्ट हो गयी थी। यह देखकर उनका हृदय विषयों की ओर से सर्वथा। तीन वर्ष बीत गये। पोष कृष्णा चतुर्दशी के दिन पूर्वासाढ नक्षत्र में उन्हें दिव्य विरक्त हो गया। उन्होंने संसार के सब पदार्थों को हिम के समान क्षणभंगुर आलोक केवलज्ञान प्राप्त हुआ। देवों ने आकर ज्ञान कल्याणक उत्सव समझ कर उनसे राग भाव त्याग दिया एवं वन में जाकर तप करने का निश्चय मनाया। समवशरण की रचना हुई। सार्वभौम धर्म का उपदेश देकर उपस्थित कर लिया। जनता को सन्तुष्ट किया। उन्होंने अनेक देशों में विहार कर संसार एवं मोक्ष का स्वरूप बतलाया। आयु के अन्त में श्री सम्मेद शिखर पर प्रतिमा योग से विराजमान हो गये एवं अश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन पूर्वाषाढ नक्षत्र में अघातिया कमों का नाश कर स्वतंत्र सदन को प्राप्त हए। देवों ने आकर निर्वाण भूमि की पूजा की । इनके कल्प वृक्ष का चिह्न था। P HOTOS BMIRTUN ittini SHAYRICS गाभगवान श्री श्रेयांसनाथ जी।। पुष्कर द्वीप के सुकच्छ देश में क्षेमपुर नगर राजा नलिनप्रभ की राजधानी था। उसने अपने प्रचन्ड बाहुबल से समस्त क्षत्रियों को जीत कर अपना राज्य निष्कंटक बना लिया था। सुन्दर व सुशील रानियां थी। आज्ञाकारी पुत्र थे, निष्कंटक राज्य था, असीम सम्पत्ति थी, वह स्वस्थ एवं निरोग था। हर प्रकार के सुख सम्पन्न प्रजा का पालन करता था। एक बार सहसाम्रवन में अनन्त नामक जिनेन्द्र ने प्रभावक शब्दों में तत्वों का व्याख्यान किया एवं अंत में संसार के दु:खों का निरूपण किया। जिसे सुनकर नलिनप्रभ सहसा प्रतिबुद्ध हो गया। उस समय उसकी अवस्था मानों किसी दुःस्वप्न देख कर जागे हुए मनुष्य की तरह हो गयी थी। वह विषय वासनाओं से अत्यंत विरक्त हो गया। SHEDA उसने राजधानी जा कर पहले पुत्र को राज्य सौंप दिया एवं फिर वन में जाकर मुनि दीक्षा ले ली। वहां ग्यारह अंगों का अभ्यास कर सोलह भावनाओं का चिन्तवन किया। जिससे तीर्थकर पुण्य प्रकृति बंध हो गया। आयु के अंत में सन्यास पूर्वक शरीर त्याग कर अच्युत स्वर्ग में पुष्पोत्तर नामक विमान में इन्द्र हुआ। यही इन्द्र आगे भव में भगवान श्री श्रेयांसनाथ होंगे। जैन चित्रकथा
SR No.033222
Book TitleChoubis Tirthankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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