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________________ माघ शुक्ला दशमी के दिन महारानी विजयसेना ने पुत्र रत्न का प्रसब किया। वह पुत्र जन्म से ही मति श्रुति एवं अवधि इन तीनों ज्ञानों से शोभायमान था। उसी समय देवों ने सुमेरू पर्वत पर लेजाकर उनका जन्माभिषेक किया एवं अजित नाम रखा। भगवान अजितनाथ धीरे-धीरे बढ़ने लगे। आपस के खेल कुद में भी जब इनके भाई इनसे पराजित हो जाते थे तब वे इनका नाम अजित सार्थक मानने लगे थे। एक दिन भगवान अजितनाथ महल की छतपर बैठे हुए थे कि उन्होंने दमकती हुई विद्युत को अचानक नीचे गिरकर नष्ट होते हुए देखा। उसे देख कर उनका हृदय विषयों से विरल हो गया। वे सोचने लगे...... 14 Buy ये बहुत ही वीर एवं क्रीड़ा चतुर पुरुष थे। युवावस्था में इनके शरीर की शोभा देखते ही बनती थी। महाराज जितशत्रु ने अनेक सुन्दरी कन्याओं के साथ इनका विवाह कर दिया एवं शुभ मुहूर्त में राज्य भार सौंप कर स्वयं धर्म सेवन करते हुए सद्गति को प्राप्त हुए। भगवान अजित नाथ ने प्रजा का पालन किया। समयोपयोगी अनेक सुधार किये। peny संसार का हर एक पदार्थ इसी विद्युत की तरह क्षणभंगुर है मेरा यह सुन्दर शरीर एवं यह मनुष्य पर्याय भी एक दिन इसी तरह नष्ट हो जायेंगे। जिस उद्देश्य के लिए मेरा जन्म हुआ था। उसके लिए तो मैंने अभी तक कुछ भी नहीं किया। अपनी आयु का बहुभाग व्यर्थ ही खो दिया। अब आज से मैं सर्वथा विरक्त हो कर दिगम्बर मुद्रा को धारण कर वन में रहूंगा, क्यों कि इन रंग बिरंगे महलों में रहने से चित को शान्ति नहीं मिल सकती। | चौबीस तीर्थकर भाग-2
SR No.033222
Book TitleChoubis Tirthankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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