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________________ इस तरह लोगों की अतिवाणी सुनकर भगवान वृषभदेव का ऐसा निश्चय कर उन्होंने लोगों को आश्वासन दिया एवं इच्छानुसार समस्त व्यवस्था करने के लिए, हृदय दया से भर आया। उन्होंने निश्चय किया कि- इन्द्र का स्मरण किया। समस्त देवों सहित इन्द्र आया। महाराज का विचार जानकर सबसे पहले पूर्व पश्चिम विदेह क्षेत्रों की तरह यहां भी, ग्राम-नगर आदि| उसने अयोध्यापुरी में चारों दिशाओं में बड़े-बड़े जिन मंदिरों की रचना की। फिर काशी, कौशल, का विभाग कर असिमसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य एवं कलिंग, कर्नाटक, अंग, बंग, मंगल, चोल, केरल, मालवा, महाराष्ट्र, सौराष्ठ , आन्ध्र, तुरष्क, विद्या इन छ: कार्यों की प्रवृति करनी चाहिये। ऐसा करने | करसेन, विदर्भ आदि देशों का विभाग किया। उन देशों में नदी, नहर, तालाब, वन, उपवन आदि पर ही लोग सुख से अपनी आजीविका ग्रहण कर सकेंगे। लोकोपयोगी उपादानों का निर्माण किया - फिर उन देशों के मध्य परिखाकोट, उद्यान आदि से सोभायमान गांव, पुर, कर्वट आदि की रचना की तब से इन्द्र का नाम पुरन्दर पड़ा। वृषभेश्वर की आज्ञा पाकर देवेन्द्र ने प्रजा को उन नगरों में बसवाया। प्रजाजन भी नवनिर्मित भवनों में रहकर अत्यन्त प्रसन्न हुए। TIONAL कायका | एक दिन अवसर पाकर वषभदेव ने प्रजा के लोगों मे क्षत्रिय, | | वृषभनाथ ने सृष्टि की सुव्यवस्था की थी इसलिए वे 'सृष्टाब्रह्मा' कहलाये। वेश्य, शुद्र इन तीन वर्णो की स्थापना कर उनके आजीविका । वह युग कृतयुग नाम से पुकारा जाने लगा। महाराज नाभिराज की सम्मति के योग्य उपाय बताये। उन्होंने क्षत्रियों को धनुष बाण तलवार से उनका राज्याभिषेक किया गया। मणि जड़ित, स्वर्ण सिंहासन पर बैठे हुए आदि शस्त्रों को चलाना सिखाया। दीन-हीन जनों की रक्षा का भार आदिनाथ तेजोमय मुखकमल सूर्य के समान दमकता था। प्रजा को सोंपा। वैश्यों को देश-विदेश में व्यापार करना सिखाया। शुद्रों |सुव्यवस्थित बनाने के लिए क्षत्रिय, वेश्य एवं शुद्र वर्ण का विभाग कर दिया को दूसरों की सेवा का कार्य सौंपा। उस समय भगवान था। उन्हें उनके योग्य कार्य सौंप दिया था। पर काल के प्रभाव से वृषभनाथ का आदेश लोगों ने मस्तक झुकाकर स्वीकार उत्तरोतर लोगों के हृदय कुटिल होने लगे। इसलिए उन्होंने द्रव्य क्षेत्र, | किया। जिससे सब ओर सुख शान्ति हो गयी। काल एवं भाव का ध्यान रखते हुए । अनेक तरह के दण्ड विधान प्रयुक्त किये थे। DIA जैन चित्रकथा 27
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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