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________________ निन्यानवे हजार योजन ऊंचे पर्वत पर पहुंच गये। शिखर पर जो पाण्डक वन में देव सेना को ठहराकर, पाण्डक शिला पर मध्य सिंहासन पर बालक जिनेन्द्र को विराजमान कर दिया। पास के दोनो ओर सिंहासनों पर ऐशान स्वर्ग के इन्द्र बैठे। इन दोनों इन्द्रों के आसन से क्षीर सागर तक देवों की दो पंक्तियां बन गयी जो वहां से जल से भरे कलश हाथों हाथ इन्द्र के पास पहुंचा रही थी। जब अभिषेक का कार्य पूरा हो गया तब उत्तम वस्व से बालक जिनेन्द्र की देह पोंछ कर इन्द्राणी ने तरह-तरह के आभूषण पहनाए, अनेक स्तोत्रों से देवराज ने उनकी स्तुति की। देव नर्तकियों ने नृत्य किया, समस्त देवों ने उनका जन्म कल्याणक देखकर अपने को धन्य माना। इन्द्र ने बालक का नाम वृषभनाथ रखा। मेरूपर्वत पर अभिषेक महोत्सव समाप्त कर अयोध्या वापस आये व बालक को माता की गोद में देकर अभिषेक विधि के समाचार सुनाये जिससे सब लोग बहुत प्रसन्न हुए। /// Chunal LuuluILICY महाराज नाभिराज ने दिल खोल कर अनेक उत्सव किए। जन्माभिषेक का || उनकी बुद्धि इतनी प्रखर थी कि उन्हे किसी गुरू से विद्या सीखने की महोत्सव पूराकर देव एवं देवेन्द्र अपने-अपने स्थानों को चले गए। जाते समय आवश्यकता नहीं पड़ी थी। आप ही समस्त विद्याओं एवं कलाओं के कुशल नाभिराज के महल पर भगवान के रक्षा के लिए चतुर कुछ देवकुमार एवं देव | हो गये थे। कभी विद्वान मित्रों के साथ बैठकर कविता की रचना करते। कुमारियों को छोड़ गया था। इन्द्र ने भगवान के हाथ के अंगूठे में अमृत भर दिया तरह-तरह की पहेलियों के द्वारा मन बहलाते। कभी सुन्दर संगीत सुधा का पान करते । कभी मयूर, तोता, हंस, सारस आदि पक्षियों की मनोहर चेष्टाएं था। जिसे चूस-चुसकर वे बड़े हुए थे। उन्हें माता का दूध पीने की आवश्यकता देखकर प्रसन्न होते। कभी प्रजाजन सेमधर वार्तालाप करते। नहीं हुई थी। URUITUTITI YSEASEATMENT जैन चित्रकथा
SR No.033221
Book TitleChoubis Tirthankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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