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पण्डिताधाय चित्रपट लेकर ललितांगदेव की खोज के लिए | इतने में पंडिताधाय भी हंसती हुई आ गई। ये चित्र कई लोगों ने देखे पर चल दी। उधर श्रीमती के पिता दिग्विजय करके लौट आये,
| उसका रहस्य किसी को समझ में नही आया परन्तु एक युवक जो साक्षात् काम उन्होंने पुत्री को पास बुलाकर कुशल क्षेम पूछा व
देव सा लगता था। चित्र को देखते ही मुर्छित हो गया। उसने सारी जानकारी अवधिज्ञान ने सारा वृतांत उसे बता दिया।
ली। उसकी चेष्टाओं से मैनें निश्चय कर लिया कि यही ललितांगदेव का जीव है। तुम्हारा ललितांगदेव जो कि हमारा भानजा है, उसके साथ |
उसके साथ वालों ने बताया कि वह राजा वज्रबाहु का पुत्र है, उसका नाम तुम्हारा शीघ्र विवाह होने वाला है। वे अब यहां आ रहे हैं
वज्रजंघ है, उसने अपना चित्र तुम्हारे पास भी भेजा है। तुम निश्चिन्त रहो।
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श्रीमती ने चित्र को हृदय से लगा लिया।
इधर राजा वज्रदंत, बहन वसुन्धरा भानजे वज्रजंघ व बहनोई विदा होकर श्रीमती अपने ससुराल उत्पलखेट नगरी पहुंची, वहां वज्रबाहु को लेकर घर आ गये।
नवदम्पति का शानदार स्वागत हुआ।
आपकी कृपा से मेरे पास सब जीजाजी आप लोगों के आने से
कुछ है। यदि आपकी इच्छा है अपार हर्ष हुआ है। आप मुझ पर | स्नेह रखते हैं। मेरे घर में आपके
तो चित्र वज्रजंघ के लिए आपकी लायक जो भी वस्तु हो उसे
पुत्री श्रीमती दे दिजीए। स्वीकार कीजियेगा।
चक्रवर्ती तो यही चाहते थे तथा विवाह की तैयारी होने लगी शुभ मुहूर्त में विवाह हो गया।
श्रीमती के सौ पुत्र हुए उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन को सफल माना।
चौबीस तीर्थंकर भाग-1
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