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कुछ दूर चलने पर श्मशान दिवा
दिगम्बर जैनाचार्य श्रीसुदत्तसागर जी महाराज चतुविचसघ सहित विहार करते हुए राजपुर की ओर बढ़ रहे हैं।
अरे! देखो जिसे मानव जीवित अवस्था में कितना स्नेह करता है,मर जाने पर उसकी क्या दशा होती है।
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श्मशान की गंदगी के कारण स्वाध्याय आदि क्रियायेंवर्जित है। अतः अन्यत्र स्थिरता करनी चाहिए...यह सोचकर
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ahal आचार्य श्रीने एक स्थान पर खड़े होकर इष्टिपातकियासो उन्हें एक छोटा पर्वत दिखाई दिया
हां ठीक है पर्वत, वहीं चलकर ठहरना
चाहिए।
पर्वत पर चलर्विध संघ सहित आचार्य श्री ने दैनिक क्रिया आरम्भको
खम्मामि सब जीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्तों मे सतभूएस वैरं मज्झन केणवि......)
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आचार्य श्री अवधिज्ञानी थे अतः...