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सम्पादकीय जैनचित्र कथा आप के बच्चे को जैन संस्कृति से परिचित कराती है। इस पुस्तक की कथा दिगम्बराचार्य सोमदेव सूरि द्वारा यशस्तिलक चम्पू महाकाव्य संस्कृत पर आधारित है। भारत अध्यात्म की उर्वर भूमि है। यहां के कण-कण में आत्मनिर्भर का मधुर संगीत है, तत्वदर्शन का रस है धर्म का अंकुरण. यहां की मिट्टी ने ऐसे नररत्नों को प्रसव दिया है जो अध्यात्म के मूर्त रूपथे। उनके उर्वमुखी चिन्तन ने जीवन को समझनेका विशद दृष्टिकोण दिया । भोग में ल्याग की बात कही और कमल दलकीभांति निर्लेप जीवन जीने की कला सिखाई । जैन शासन की श्री वृद्धि में उनका अनुदान अनुपम है वे त्याग तपस्या के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। आज की नई पीढ़ी विशेषकर नये नये आकर्षक साहित्य की ओर रूचिवान है। कहानी का अपना मूल्य है, उसका मूल्य इसलिए नहीं होता कि वह घटना है या कल्पना है किन्तु उसका मूल्य इसलिए दोला है कि वह जीवन्त सत्यको अभिव्यक्त करती है। अहिंसा जैन सिद्धान्त का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। इस कथा में - में भी यही सिद्ध किया गया है कि राजा यशोधर ने अपनी माला के उपदेश से प्रभावित होकर अम्बिका देवी के लिए चूर्ण निर्मित मुर्गे का बलिदान किया था उसी पाप से उन्हें माला के साथ ही सात भवों में अनेक दुःख सहन करने पड़े। जैनाचार्यों और मुनियों ने मानव को हिंसक पशुवृत्ति से ऊपर उठ कर मानवता की दयामयी मणिशिला पर प्रतिष्ठित किया है। हमें विश्वास है कि जीवन को रोशनी देने वाली इन कथाओं को व्यापक रूप में पढा जायेगा।
-धर्मचंद शास्त्री (आचार्य धर्म सागर जी सधस्थ)
1 प्रकाशक: आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला
गोधा सदन अलसीसर हाउस,संसारचंद्र रोड़ जयपुर सम्पादक: धर्मचंद शास्त्री लेखक : मुनि अमित सागर जी चित्रकार: बनेसिंह जयपुर
• मुद्रक :-
. सैनानी ऑफसैट
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