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नारदजी कुंण्डनपुरसे कैलाशपर्वत पर पहुंचे कैलाश पर्वत से नारदजी द्वारिकापुरी पहुंचे .. वहां बैठकररुक्मिणीकासुन्दर चित्रबनाया
(कल्याण हो, द्वारिकाधीश! हो! यहचित्रबहुत सुन्दर बना श्रीकृष्ण
देखिएन,हम आपके लिएकैसा इसे देखकर मोहित जरूर होंगे।
दुर्लभचित्र लाए हैं।
इतना सुन्दर रूप! मुनिराज यह कोई मानवी हेया कोई देवीया
अप्सरा?
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यहचित्रकुंण्डनपुर के राजा भीष्म की परम रूपवती पुत्रीरुक्मिणीका है।यहकन्या हर प्रकार से आपके
(योग्य है, राजन्।
है तो तोक्या,
कुंआरीही। यहबालाकुंआरी
किन्तु इसके पितानेइसकी मंगनीचंदेरीके राजा शिशुपालके साथकरदी है।
pooपण
प्राप्रपा
तबछोडिए।जबइसका विवाह तयहोही चुकाहेतबाइस प्रसंग सेक्वालाभ
सोबात नहीं कृष्ण वास्तव में, यह कन्या शिशुपालसे | विवाह नहीं करना चाहती।
एक बार हमने आपकी चर्चा इससे की थी, बस तभीसेयह मन-प्राण से आपका वरण कर चुकी है।
तब क्या किया
जाए?
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