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नारदजी राजभवन से शीघ्र ही महारानी सत्यभामा के महल में पहुंचे। सत्यभामा श्रृंगारादि में मग्न थी अतः नारदजी का सम्मान नहीं किया
क्या सत्यभामा को इतना घमंड होगया कि इसने मेरा सम्मान नहीं किया
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नारदजी शीघ्रहीमहलसे बाहर निकलगये सत्यभामा कोनारदजी के आने का यता
भी नहीं चला।
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नारदजी द्वारिका से चलकर कैलाश पर्वत पर पहंचे तयासत्यभामा के अपमान की योजना बनाने लगे।
हाअच्छा होगा कियदि एकदिन नारदजी कुण्डनपुर हां इस कन्या से श्री कृष्ण की शादी करवाएं जिससे में सत्यभामा सेसुन्दर नगर गयेजहाँ पर राजा
मेरा अपमान का बदला लिया जा कन्या का श्रीकृष्ण भीष्म की पुत्री रुक्मिणी को
सकेगा से विवाह करवाएं देवा जिससे सत्यभामा का अपमान अवश्य होगा।
नारदजी ने बहुत जगह जाकर सुन्दर कन्या
की खोज की