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वत्स। इस निंद्य चर्चाको बंद करो। रानीकनकमात्मा के पूर्व भव के राजन!आपने प्रद्युम्नका लालन-पालन किया। इसके आपके यहां रहने कारण यह सब हुआ। इसे भूल जाओ और राजाकालसंवरकोमुक्त करो की अवधि पूरी हुई। अब इसे अपने पिता कृष्ण और माता रुक्मिणी के
पास जाने की अनुमति दीजिए। जैसी आपकी आज्ञा।
तो क्या यहीं से विदा लेंगे। नगर तक नहीं चलेंगे।
प्रद्युम्न कुमार की जय
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हातात! चलिए, महलोंतक प्रद्युम्नकुमार ने राजा कालसंवर को नागपाशसे और उनके पांच सौराजकमारों चलिए। मुझे माता कनकमालासेभी कोबावड़ी से मुक्त किया। मृत सैनिकों कोजीवन दान देकर अपनी सेनाकोलुप्तकर दिया। आज्ञा लेनी है। प्रद्युम्नकुमार रानी कनकमाला से आज्ञा लेने पहुंचा
हे माता! मैं अपने जनक -जननी के पास जा रहा हूँ। अज्ञानवश मुझसे आपका जो अनादरहूआ, उसके लिए क्षमा करें, मुझे द्वारिका जाने की अनुमति
दें। बेटा, क्षमा तो मैं चाहती हूँ। जाने किस पूर्व यापके कारण मेरी बुद्विभ्रष्ट हो गई। मैं अपने को कभी क्षमा नहीं कर सकूगी। तुम हंसी-खुशी जाओ तुम्हारा सदा कल्याण
हो।
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राजा कालसंवर,रानी कनकमालाऔरमेधकूट वासियों ने प्रद्युम्न और नारदजीकोअश्रुपूरित नयनों से विदा किया।
हेतात! द्वारिका अभी
कितनीदर है।
प्रद्युम्नकुमार ने विद्याबलसे एक सुंदर । इस समय हम विद्याधरों विमान बनाया नारदजी और प्रद्युम्नने के देशसे गुजर रहे हैं।
आकाशमार्ग से द्वारिकापुरी के लिए प्रस्थान द्वारिका अभी दूर है। किया। उन्होंने शीघ्रहीकाफी दूरी तयकर
ली।
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