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नारदजी द्वारिका में.....
क्याबताया तीर्थकर सीमंधर स्वामी ने?
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हाँ,मैने नवजात शिशु के हरण का सामाचार सुना था मैतभी पुण्डरीकनी नगरी के तीर्थकर सीमंधर स्वामी के समवशरण में गया। भगवान
की स्तुति करके तुम्हारे पुत्र के बारे में पूछा
तुम्हारेपुत्रका हरणपिछली शत्रुता के कारण एक दैत्यने किया है वह उसेमारना चाहतामा किंतु ऐसानहोसका
और अबवह बालक मेघकूटनगर के राजा कालसंवर और रानी कलकमालाके पास
तोचलिए,
उसे ले आएं।
नहीं माधव | वह अभीनहीं आयेगा, भगवानसीमंधर स्वामी के अनुसार वह सोलह वर्ष बाद सोलह विद्याओंसहित लौटेगा उसके आगमन के लक्षण भी उन्होंने बताए-गूगबोल्नेलगेंगे, बहरेसुनने लगेंगे,सूरवेवृक्षहरे हो जाएंगे, जावड़ियाजल से भरजाएंगी, आदि आदि। आपने यह
में मेघकूट जाकर तुम्हारे पुत्रकोदेख भी आयाह। राजा-रानी सामाचार देकर
ने उसकाजन्मोत्सव बड़ी धूमधामसे मनाया था। बड़ा उपकार
प्रद्युम्नकुमार नाम ररबाहे उन्होंने उसका। किमा। मुनिवर।
अच्छा !
समयमीततागया। प्रद्युम्नकुमार ने सोलहवें वर्ष में प्रवेश किया। एकदिनराजा कालसंवरमे सभा बुलाई। उससमयसभासदौके अलावासभी राजकुमार भी मौजूद थे।
नारदजी प्रद्युम्न के रूपगण आदिका विस्तार | सेवर्णन कर देशांतर गमन कर गए। द्वारिका
मेंव्याप्त शोक कीमहर समाप्त हुई। सभासों! प्रद्युम्न कुमार राजकुमारों में सबसे छोटा है। किंतुबहसबसे अधिक बलवान और योग्य है। फिर मैंने रानी कनकमाला कोवचाभीदेररवाहे। इसलिए में प्रद्युम्न कुमार कोयुवराज घोषित करताहूँ। प्रद्युम्न, आगे आओ और युवराज का
पद ग्रहण करो।
आपकी आज्ञा) शिरोधार्य,
पिताजी
राजकुमारों को राजा का यह. निर्णय बुरा लगा।