________________ 20 सिरिरयणसेहरसूरिहिं संकलिया अरिहं सिद्धगणीणं गुरुपरमादिठणंतसुगुरुणं / दुरणंताण गुरुण य सपणवबीयाओ ताओ य // .202 // रेहादुगायकलसामारामिअमंडलंब त सरह / चउदिसि विदिसि कमेणं जगाइजंभाइकयसेवं // 203 / / सिरिविमलसामिपमुहाहिट्ठायगसयलदेवदेवीणं / सुहगुरुमुहोओ जाणिअ ताण पयाणं कुणह झाणं // 204 // तं विजादेविसासणसुरसासणदेविसेविअदुपासं / मूलगह कंठणिहिं, चउपडिहारं च चउवीरं // 205 // . दिसिवालखित्तवालेहिं सेविअं धरणिमंडलपइई / पूयंताण नराणं नूणं पूरेइ मणइह // 206 // एयं च सिद्धचकं, कहिअं विज्जाणुवायपरमत्थं / नाएण जेण सहसा सिझंति महंतसिद्धीओ // 207 // एयं च विमलधवलं जो झायइ मुक्कज्झाणजोएण / तवसंजमेण जुत्तो, सो पावइ निजरं विउलं // 208 // अक्खयमुक्खो मुक्खो जस्स पसारण लब्भए तस्स / झाणेणं अन्नाओ सिद्धाओ हुंति किं चुज्जं ? // 209 / / एयं च परमतत्तं, परमरहस्सं च परममंतं च / परमत्थं परमपयं, पन्नत्तं परमपुरिसेहिं // 210 // तत्तो तिजयपसिद्धं अट्ठमहासिद्धिदायगं सुद्धं / सिरिसिद्धचक्कमेअं, आराहह परमभत्तीए // 211 //