________________ 14 सिरिरयणसेहरसूरिहिं संकलिया तत्तो मयणा पइणा सहिमा मुनिचंदगुरुसमीवंमि। .. . पत्ता पमुइअचिचा भत्तीए नमइ तस्स पए // 182 // गुरुणो य तया करुणापरित्तचित्ता कहति भवियाणं / गंभीरसजलजलहरसरेण धम्मस्स फलमेवं // 183 // सुमाणुसत्तं मुकुलं सुरुवं, सोहग्गमारुग्गमतुच्छमाउ / रिद्धिं च विद्धिं च पहुत्तकित्ती पुनप्पसाएण लहंति सत्ता // 18 // इच्चाइदेसणंते गुरुणो पुच्छंति परिचियं मयणं / वच्छे कोऽयं धनो वरलक्खणलक्खिअसुपुत्रो ? // 185 / / मयणाइ रुअंतीए कहिओ सव्वोवि निअयवुत्तंतो। विनतं च न अन्नं भयवं ! मह किंपि अत्थि दुहं // 186 // एयं चित्र मह दुक्खं जं मिच्छादिहणो इमे लो। निदंति जिणह धम्मं सिवधम्म चेव संसंति // 187 // ता पहु कुणह पसायं किंपि उवायं कहेह मह पइणो। जेणेस दुट्ठवाही जाइ खयं लोअवायं च // 188 // पभणेइ गुरू भद्दे ! साहूण न कप्पए हु सावज्ज / कहिउं किंपि तिगिच्छं विज्ज मंतं च तंतं च // 189 तहवि अणवज्जोगं समपि आराहणं नवपयाणं / इहलोइअपरलोइअनुहाण मूलं जिणुदिलं // 19 // अरिहं सिदायरिया जमाया साहुणो य सम्म / नाणं चरणं च षो, इस पयमवर्ग परमततं // 191