________________ 86 ब्रह्मचारी हे शीतल पावन 卐HC जीवन की परिभाषा थे तुम, मानवता की आशा थे तुम, बने सदा पतझर में सावन, ब्रहमचारी हे शीतल पावन ! धर्मकलश जब सिसक रहे थे, मुश्किल. था दर्शन का जीना, बाधाओं से टकराये थे तम, उस समय खोल अपना सीना ! धर्मतत्व की परिभाषा थे तुम, जन-जन की मंगल आशा थे तुम, कर्म तुम्हारे थे मन-भावन, वह मचारी हे शीतल पावन ! राष्ट्र-प्रेम नस-नस में भरकर, आजादी की ध्वजा उठाई, कण-कण जिससे धधक उठा था, ऐसी पावन आग जगाई ! देश-प्रेम की आशा थे तुम, वलिदानों की भाषा थे तम, राष्ट्र-प्रेम दे गए सुहावन, वह मचारी हे शीतल पावन !