________________ प्रबल प्रेरणा के फलस्वरूप उन्होंने 14 ग्रन्थों में से 6 ग्रन्थों की . टीकायें भी की। श्री माला रोहण, श्री पंडित पूजा, श्री कमल बत्तीसी, श्री श्रावकाचार, श्री ज्ञान-समुच्च सार, श्री उपदेश शुद्धसार, श्री सिद्ध स्वभाव, श्री शून्य स्वभाव, श्री त्रिभंगीसार, श्री ममल पाहुड़, श्री खाति का विशेष, श्री छदमस्तवाणी, श्री नाममाला तथा श्री चौबीस ठाना ग्रन्थों में से निम्नलिखित 6 ग्रन्थों की टीकायें की श्री माला रोहण, श्री पंडित पूजा, श्री कमल बत्तीसी, श्री श्रावकाचार श्री ज्ञान समुच्च सार, श्री उपदेश शुद्धसार, श्री त्रिभंगी सार, श्री चौबीस ठाना तथा श्री ममल पाहुड़ जी ग्रन्थ (तीन भागों में) जिनका जन साधारण की भाषा हिन्दी में भाषानुवाद कर ग्रन्थ रचनाकार श्रद्धय पूज्य पाद श्री जिन तारण तरण स्वामी के आध्यात्मिक मर्म को स्पष्ट करके उन्होंने न केवल तारण समाज को ही उपकृत किया है, बल्कि संपूर्ण जैन समाज का आध्यात्म जगत में महान उपकार किया है / क्योंकि यह सभी ग्रन्थ संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश मिली जली भाषा में होने से जन साधारण को उनका समझना बड़ा ही कठिन था, किन्तु श्रद्धेय पूज्य ब्रह्मचारी जी ने अपनी लेखनी से एक संत की अटपटी भाषा शैली की रचनाओं को भी सर्वेषुलभ्य एवं सर्वप्रिय सरल भाषा में निरूपित कर दिया है / ___ वास्तव में श्रद्धय पूज्य ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी जैन धर्म के महान क्रांतिकारी, युगदृष्टा महापुरुष थे, उन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में आगे आकर पूर्वाचार्यों का अनुसरण कर सम्यग दर्शन, ज्ञान एवं चारित्र की त्रिवेणी बहाकर भव्यात्माओं को मुक्त होने के लिए जैनागम का सरल मार्ग प्रशस्त कर सम्पूर्ण जैन समाज का महान उपकार किया है / पह वस्तुतः सत्य है कि "महान विभ तियां महानता का लक्ष्य लेकर ही अवतरित होती हैं" / धन्य हैं वे सन्त, जिनकी साधना से जगत को कल्याण का मार्ग मिलता है, जिनके अनुभव से ज्ञान और जीवन से प्रकाश