________________ पं० प्रयोध्या प्रसाद गोयलीय जैन धर्म के प्रति इतनी गहरी श्रद्धा, उसके प्रसार और प्रभावना के लिए इतना दृढ़ प्रतिज, समाज को स्थिति से व्यथित होकर भारत के इस सिरे से उस सिरे तक भूख और प्यास की असह्य वेदना को बस में किए रात दिन जिसने इतना भ्रमण किया हो, भारत में क्या कोई दूसरा व्यक्ति मिलेगा ? (रेलयात्रा में) वही धकापेल वाला थर्ड क्लास' उसी में तीन-तीन वक्त सामायिक, प्रतिक्रमण / उसी में जैन मित्रादि के लिए संपादकीय लेख, पत्रोतर, पठन-पाठन अविराम गति से चलता था, मार्ग में अष्टमी, चतुर्दशी आई तो भी उपवास, और पारणा के दिन निश्चित स्थान पर न पहुँच सके तो भी उपवास, और 2-3 रोज के उपवासी जब संध्या को यथास्थान पहुंचे तो पूर्व सूचना के अनुसार सभा का आयोजन, व्याख्यान, तत्वचर्चा / न जाने ब्रह्मचारी जी किस धातु के बने हुए थे कि थकान और भख प्यास का आभास तक उनके चेहरे पर दिखाई न देता था / विरोध की जबरदस्त आंधी के दिनों में विरोधियों ने सर्वत्र नारे लगाये शीतलप्रसाद को ब्रह्मचारी न कहा जाय, उसे आहार न दिया जाय, उसको धर्मस्थानों में न घुसने दिया जोय. उसे जैन संस्थाओं से निकाल दिया जाय, उसके व्याख्यान न होने दिए जांये, उसके लिखने और बोलने के सब साधन समाप्त कर दिये जायें / पर ब्रह्मचारी जी अविचलित रहे / पानीपत की (सन् 28 या 26 को) ऋषभ जयन्ती जैसी कई घटनाएं दृष्टान्त हैं / सन् 40 में रुग्णावस्था में रोहतक से दिल्ली होते हुए लखनऊ जाने लगे तो बोले 'गोयलीय' हमारा जमाना समाप्त हुआ, अब तुम लोगों का युग है / कुछ कर सको तो कर लो, समाज सेवा जितनी अधिक बन सके कर लो, मनुष्य जन्म बार बार नहीं मिलने का / वीर राजेन्द्र कुमार जैन मेरठ संसार में अनेक मनुष्य प्रतिदिन जन्म लेते हैं और मर जाते हैं पर उनको कोई याद करने वाला नहीं होता, पर कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनकी याद बराबर बनी रहती है / बे युग को अपने साथ 67