________________ छुये परन्तु ब्रह्मचारी जी के पैर मुझे छूने पड़े / मैंने अपने अहंकार वश बहुत कम आदमियों को अपने से बड़ा माना लेकिन ब्रह्मचारी जी को मैं मन ही मन सदा बहुत बड़ा मानता रहा / बावजी के प्रेरक कुछ हद तक ब्रह्मचारी जी थे और ब्रह्मचारी जी की प्रेरक थी वह उत्कृष्ट आत्मा जिसकी सत्ता में हमें एकनिष्ठ विश्वास है / ब्रह्मचारी जी कई दिन हरदोई में रहे / ब्रह्मचारी जी और बाब जी दोनों ही महापुरुष थे। परन्तु एक प्रतिमाधारी था और दूसरा केवल एक अणुव्रती गृहस्थ / यह 25 या 26 सन् की बात है। बाबू जी का जीवन करीब 10 वर्ष हुए, बदल चुका था / उन्होंने अपने व्यस्त जीवन में से भी समय निकाल कर जैनधर्म सम्वन्धी बहुत से ग्रन्थ रच डाले थे। दिगम्बर जैन परिषद की बुनियाद पड़ चुकी थी और दि. जैन महासभा के कुछ सज्जन बाब जी की अप्रिय आलोचना कर रहे थे / वाव जी में नीतिमत्ता कुछ कम थी / वे अपनी बात सदा ओजस्वी और बहुत सीधे ढंग पर कह देते थे / महासभा के साथ अपने मतभेद को भी इसी ओजस्वी और सीघे ढंग पर उन्होंने प्रकट कर दिया था / ब्रह्मचारी जी के साथ उनकी गाढ़ी मैत्री थी। दोनों में बहुत सी और बहुत लम्बी-लम्बी बातें हुई / कुछ इधर-उधर और कुछ मेरे सामने / मुझे ब्रह्मचारी जी के समक्ष बाबू जी भी कुछ हलके-हलके लगने लगे। ब्रह्मचारी जी की वह सूरत हमारे मन में घर कर गयी / वे बरामदे में काठ के तख्त पर सोते थे और बहुत तड़के उठते थे। दिन में एक ही वार भोजन करते थे और भोजन करते समय मौन रहते थे / वैसे तो बाब जी का भोजन भी बहुत पवित्रता पूर्वक तैयार होता था, किन्त ब्रह्मचारी जी का भोजन विशेष तत्परता के साथ बनता था / मझे याद है कि व्र० जी के लिये स्वयं हमारी माताजी भोजन बनाती थीं और ब्र० जी को मेज कुर्सी पर न लाकर उन्हें चौके में भोजन कराते थे। उनका व्यवहार अभ्यागतों से लगाकर नौकरों चाकरों तक से ममता भरा था /