________________ भिजवाता रहा, उसी काल में एक ग्रन्थ की रचना 'भी प्रारंभ कर दी जो अपूर्ण ही रह गया, और जो अन्त समय तक धर्म एवं समाज की चिन्ता करता रहा, जैन समाज के उस महान उपकारी युगपुरुष की उपरोक्त महाप्रयाण-गाथा भी शिक्षाप्रद है। वस्तुतः एफ ही शमा बुझी मौत के हाथों, लेकिन कितनी तारीक. हुई है तेरी महफिल साकी! उपसंहार न सर झुका के जिये हम, न मुंह छिपा के जिये, सितमगरों की नजर से नजर मिला के जिये / अब एक रात कम जिये तो हैरत क्या, हम उनमें थे जो मशालें जला के जिये / / शायर की इस उक्ति को स्व. ब्र. शीतलप्रसाद जी ने अपने जीवन से पूर्णतया चरितार्थ कर दी थी। उन्होंने तो जीते जी अनेक मशालें जला दी थीं -अपने व्यक्तित्व से समाज के प्रायः प्रत्येक क्षेत्र को आलोकित कर दिया था। धर्म, संस्कृति और समाज के लिए उनके हृदय में जो उत्कट तड़प सदैव विद्यमान रही और उनकी सर्वतोन्मुखी उन्नति एवं प्रगति के हित में उन्होंने जो अपने जीवन का एक-एक क्षण होम दियां, ऐसा करने वाले युग-युगान्तरों में बिरले ही होते हैं। उन्होंने न जाने कितनों को सन्मार्गकी प्रेरणा दी, लेखक बनाया,धर्म में आस्था दृढ़ की, समाज सेवा के व्रत में दीक्षित किया स्वयं अपने उदाहरण से पथ-प्रदर्शन भी किया। किन्तु यदि उनकी जलाई हई मशालों को उठाने वाले धीरे-धीरे कालकवलित हो गये या अपने उत्तरदायित्व के निर्वाह में शिथिल हो गये और शेष ने इम मशालों की उपेक्षा की, उन्हें बुझ जाने दिया, तो इसमें उस युग पुरुष का क्या दोष है ? आज महात्मा गाँधी के नाम का दम भरने वालों और उस नाम को सुनाने वालों में कितने ऐसे हैं जो महात्मा जी के सच्चे अनुयायी रह गये हैं ? स्वयं भगवान महावीर को परमात्मा के रूप में पूजने वालों में उन भगवान के सच्चे उपासक, सच्चे अनुयायीं