________________ आध्यात्मिक सन्त भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य प्रणीत ग्रंथराज " समयसारप्राभृत" प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक साहित्य का अमल्य रत्न है और जैन परम्परा के आध्यात्मिक साहित्य का तो वह मूल स्रोत रहता आया है / गत दो सहस्त्रों वर्षों में अनेक संतों, योगियों एवं सुमुक्ष विद्वानों ने इस ग्रन्थ पर टीका, व्याख्या, वचनिका आदि की विभिन्न भाषाओं में रचना की, जिनमें 10 वीं शती ई. के अमतचन्द्राचार्य का प्रायः सर्वोपरि स्थान है / उन्होंने न केवल समयसार की " आत्मख्याति नाम की संस्कृत टीका रची वरन मूल प्राकृत गाथाओं पर भावपूर्ण ललित संस्कृत "कलशों" की भी रचना की। . समयसार अध्यात्मशास्त्र है और उसमें मुख्यतः शुद्ध द्रव्य का निश्चय नयावलम्बी निरूपण है / अतएव अध्यात्मरसिक सुमक्षओं के लिये वह सदैव से प्रधान प्रेरणा स्रोत एवं सर्वाधिक प्रिय अध्ययनीय शास्त्र रहता आया है। क्योंकि अध्यात्मरस की एकान्तिक धारा में वहने वाले बहन व्यवहार धर्म में शिथिल हो जाते हैं तथा करणानुयोग, चरणानुयोग एवं प्रथमानुयोग, के शास्त्रों की उपेक्षा करने लगते हैं तो उस समयसारी प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया स्वरूप गोम्मटसारादि सैद्धान्तिक ग्रन्थों के पठन-पाठन पर अधिक बल दिया जाने लगता है। ऐसा बीच-बीच में प्रायः बराबर होता आया है, किन्तु जो मनीषी जिनधर्म के मर्म को समझते हैं, उसकी अनेकान्तिक प्रकृति को पहचानते हैं और उसकी नयअवस्था के जानकार हैं, वे समयसारी तथा गोम्मटसारी, दोनों धाराओं के बीच सुखद समन्बय स्थापित करके चलते हैं / वे निश्चय और व्यवहार दोनों का संतुलन साधकर स्वपर कल्याण करते है / / आधुनिक युग के गत सौ सवा सौ वर्षों में भी समयसारी तथा मोम्मटसारी पंडितों के दो वर्ग स्पष्ट दृष्टिगोचर होते रहे है / युग के आरम्भ काल के पंडितों बलदेवदास, अर्जुनलाल, धन्नालाल, मन्नालाल भन्नालाल, चुन्नीलाल, आदि विद्वान मुख्यतः सैद्धान्तिक एवं नैयायिक प्रतिभा के धनी रहे / समयसारी घारा में दो नाम व्यापक रूप से मके श्रीमद रायचन्द्र भाई गृहस्थ थे, किन्तु उच्चकोटि के आध्यात्मिक ( 31 )