________________ I am in receipt of your letter dated the 18th August. It is really a very noble idea- your coming to this country ... There are schools and colleges where religious education is given.. Everything is done in Japanese language. Even one man out of a hundred cannot understand English. Sanskrit and Pali are taught in Imperial University at Tokyo. I shall do my best in making your stay here comfortable. I live in kobe, a prosperous sea-port, you can easily stay with me. One hundred rupees per month should suffice in case you stay with me. In case you live separately the expenses will come to about 150/ बुद्धिस्ट मिशन इन इगलेन्ड के धर्मानुशासक भिक्षु आनन्द कौसल्यायन ने ब्रह्मचारी जी को लन्दन से अपने 17-10-1932 के पत्र में लिखा था-यहाँ पहुंचे अब चौथा महीना है / शीत उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। घर में अंगीठी जलाने की आवश्यकता रहती है। आजकल 74-75 डिग्री पर पारा रहता हैं। अधिक सर्दी के दिनों में 30 डिग्री तक गिर जाता है, वस्त्र के संबंध में देश की जलवायु का ख्याल रखना जरूरी है। और किसी वात की परवाह करने की जरूरत नहीं हुई / जहाज में चढ़ते समय कुछ लोग पीत वस्त्र देखकर हँसे थे / लेकिन वह हंसी उसी दिन मिट गई / जहाज में, मार्सेल्ल में पेरिस में और लन्दन में हमारा वस्त्र घही हैं जो लंका में था / लन्दन में कभी - कभी लोग मुझे देखकर गाँधी - गाँधी चिल्लाते हैं / मेरा मनोरंजन होता है / एक दिन एक आदमी ने कहा कि “गांधी नहीं , गांधी के लेड़के हैं / मैंने मन में कहा कि बहुत ठीक। " हां एक बात यहाँ आरम्भ की है, जो लंका में नहीं करता था। चीवर के अन्दर एक गर्म बनियन पहनाता हूं बिलकुल नंगे बदन रहने में रोग मोल ले लेने का डर है भोजन के समय में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं हुई / जहाज में भी 12 बजे भोजन हो जाता था / मध्यान्ह के बाद न जहाज में कभी भोजन हुआ न यहाँ / प्रातःकाल साढे 7 बजे रोटी- दूध, और 12 बजे फिर दाल भात, सब्जी, फल / शरीर में किसी प्रकार की कोई दुर्बलता नहीं (28)