________________ (24) इसका क्या अर्थ है ? - उत्तर - निविकार चिच्चमत्कार भावना के प्रतिपक्षभूत (शुद्धात्मानुभूति से रहित याने धर्मध्यान रहित याने मिथ्यात्वसहित ) विषयकषाय के निमित्त से उत्पन्न हुए आर्त-रौद्र दो ध्यानों के द्वारा परिणत जो गृहस्थजीव हैं उनको आत्माश्रित निश्चय धर्मध्यान का (शुद्धात्मानुभव का) अवकाश नहीं है / लेकिन उन अव्रती सम्यक्त्वी धर्मध्यान (वस्तुस्वरूप को जानकर अपने स्वभाव का पारिणामिकभाव का चितवन) करनेवालों को शुद्धात्मस्वभाव आश्रित शुद्धात्मानुभव होता है, उसका निषेध नहीं किया।. .. 11) शंका - समयसार गाथा नं. 96 की तात्पर्यवृत्ति में श्री - जयसेनाचार्यजी लिखते हैं कि, - " ननु वीतरागस्वसंवेदनज्ञानविचारकाले वीतरागविषेशणं किमिति क्रियते प्रचुरेण भवद्भिः, किं सरागमपि स्वसंवेदनज्ञानमस्तीति ? अत्रोत्तरं / विषयसुखानुभवानंदरूपं स्वसंवेदनज्ञानं सर्वजनप्रसिद्धं सरागमप्यस्ति / शुद्धात्मसुखानुभूतिरूपं स्वसंवेदज्ञानं वीतरागमिति व्याख्यानकाले सर्वत्र ज्ञातव्यमिति भावार्थ : // " इसका क्या अर्थ है ? उत्तर - शंकाकार पून्निी है कि वीतराग स्वसंवेदनज्ञान का विचार करते समय वीतराग ऐसे विशेषण का आप प्रचुरतासे (बहुलतासे) प्रयोग करते हो, तो क्या सराग(रागसहित) स्वसंवेदनज्ञान भी होता है / श्री जयसेनाचार्यजी उत्तर देते हैं कि-" सर्वजनप्रसिध्द विषय सुखानुभवानंदरूप स्वसंवेदनज्ञान भी है ।(अज्ञानी का का स्वसंवेदनज्ञान राग(अनंतानुबंधी क्रोधमानमायालोभ मिथ्यात्वोदय जनित कषाय सहित है) / और शुध्दात्मसुखानुभूतिरूप स्वसंवेदनज्ञान वीतराग स्वसंवेदन है, याने सम्यक्त्वीका (चतुर्थादिगुणस्थानवी जीवका) स्वसंवेदनज्ञान वीतराग स्वसंवेदन है, क्योंकि, अनुतानुबंधी क्रोधादि मिथ्यात्वोदयजनित राग रहित है ); और निर्विकल्पज्ञान