________________ "सच पूर्वोक्तविवक्षितैकदेशुद्धनिश्चय आगमभाषया किं भण्यते - स्वशुद्धात्मसम्यक्श्रद्धाज्ञानानुचरणरूपेण भविष्यतीति भव्यः, एवंभूतस्य भव्यत्वसंज्ञस्य पारिणामिकभावस्य संबन्धिनी व्यक्तिर्मण्यते / अध्यात्मभाषया पुनर्रव्यशक्तिरूप-शुद्धपारिणामिकभावविषये भावना भण्यते, पर्यायनामान्तरेण निर्विकल्पसमाथिर्वा शुद्धोपयोगादिकं चेति" . अर्थ - जो भव्य जीव मिथ्यात्वी था वह जब मोक्षमार्गस्थ होता है तब एकदेश शुद्ध निश्चय (एकदेशशुद्ध) होता है। उस एकदेश शुद्धनिश्चय को (याने एकदेश शुद्धपरिणाम को ) आगमभाषा से इस तरह करते हैं | अध्यत्मभाषा से कहते हैं कि उस कि जो स्वशुद्धात्मा के | जीव ने द्रव्यशक्तिरूप पारिणामिक सम्यश्रद्धानज्ञानानुचरणरूप होगा वह भाव के विषय में भावना की (याने भव्य होता है, उस भव्यत्वनामक | अपने निजशुद्धात्म स्वभाव का चिंतन पारिणामिक भाव की व्यक्ति स्मरण-अनुभव किया) उस (प्रगटता) हो गयी। शुद्धात्मभावना को पर्याय नामान्तर से निर्विकल्प समाधि, शुद्धोपयोग, अभेदरत्नत्रय, निश्चयसम्यक्त्व, शुद्धात्मानुभूति, शुद्धात्मानुभव इत्यादि कहते हैं। ' इससे यह सिद्ध हुआ कि शुद्धभावना,शुद्धोपयोग भावना, शुद्धोपयोग, निर्विकल्प समाधि, शुद्धात्मानुभव, अभेदरत्नत्रय ये एकार्थवाची शब्द (समान अर्थी शब्द) हैं। 10) शंका- प्रवचनसार गाथा नं. 254 की तात्पर्यवृत्तिमें लिखा है " ........ निर्विकारचिच्चमत्कारभावनाप्रतिपक्षभूतेनविषय कषायनिमित्तोत्पन्नेनातरौद्रदुर्थ्यानद्वयेन परिणतानां गृहस्थानामात्माश्रितनिश्चय धर्मस्यावकाशो नास्ति, ......"