SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् नेमिनाथ के पञ्चकल्याणक - पं. पवनकुमार जैन शास्त्री 'दीवान', मोरेना ऋग्वेद में भगवान् नेमिनाथजी का नामोल्लेख ऋग्वेद में अर्थात् वैदिक संस्कृति में विभिन्न प्रसंगों में अरिष्टनेमि अर्थात् जैन दर्शन के २२वें तीर्थङ्कर नेमिनाथजी का कथन सन्दर्भो सहित पठनीय है। पञ्चबालयति-परम्परा का आगमोल्लेख 24 तीर्थङ्करों में 5 तीर्थङ्कर बालयति रहे हैं जिनमें श्री नेमिनाथजी भी एक हैं। दर्शित करके दिगम्बर-परम्परा में यह निर्विवाद मान्यता है; किन्तु श्वेताम्बरों में एक पक्ष इसी मान्यता को जबकि दूसरा पक्ष भगवान् पार्श्वनाथ को विवाहित एवं शेष 4 को बालयति मानता है। भगवान् नेमिनाथजी का ऐतिह्य जीवनवृत्त भगवान् ऋषभदेव के राज्यकाल में 52 जनपदों की स्थापना हुई थी जिनमें शूरसेन भी एक था, उसे ध्यान रखकर कालान्तर में शत्रुघ्न के पुत्र सूरसेन को भी इसका संस्थापक सिद्ध करते हुए, सूरसेन की राजधानी मथुरा के विविध नाम दर्शाये हैं, कृष्ण साहित्यानुसार 84 वनों में यमुना तट पर अग्रवन ही बहुत दूर तक व्याप्त था। हरिवंशपुराण के आधार पर हरिवंश में यदु नामक राजा से वंश-परम्परा प्रारम्भ होकर नरपति-शूर-सुवीर, व अन्धकवृष्णि से गुजरती हुई समुद्रविजय- नेमिकुमार, वसुदेव- श्रीकृष्णादि तक चलती रही। मथुरा के राजा भोजक वृष्णि से चलती हुई, उग्रसेन के कंस-देवकी, राजीमती (राजुल) का रूप ले प्रवर्तित हुई। यदुवंशियों द्वारा शौरीपुर छोड़कर द्वारिका प्रस्थान सिद्ध हुआ है तथापि शौरीपुर नेमिकुमारजी की जन्मस्थली के रूप में गौरवान्वित है। शौरसेनी भाषा एवं दिव्यध्वनि की 18 महाभाषाएँ ___ सूरसेन जनपद एवं राजा के नामकरण के आधार पर शौरसेनी-भाषा/बोली का प्रादुर्भाव हुआ, आचार्य भरतमुनि ने भी नाट्यशास्त्र में शौरसेनी के प्रयोगार्थ बल दिया, दिव्यध्वनि में 18 महाभाषाओं एवं 700 लघु भाषाओं की चर्चा शास्त्रों में मिलती है उनमें 18 महाभाषाओं का उल्लेख इस भाषा से सम्बन्धित है। तीन काश्मीरदेशीय, तीन लाटदेशीय, तीन मरहरा देशीय, तीन मालवदेशीय, तीन गौडदेशीय, तीन मागधदेशीयइस तरह 18 महाभाषाओं का उल्लेख है। भगवान् नेमिनाथ के पूर्वभव, गर्भकल्याणक, स्वप्नावली व प्रतिफलादि ___कवि भूधरदास के अनुसार भगवान् नेमिनाथ के पूर्व दश भवों का उल्लेख, उनका गर्भकल्याणक हुआ तब प्रभु के गर्भ में आने के पहले 16 स्वप्नदर्शन, प्रातःकाल महाराजा द्वारा उनका फल ज्ञात कराना एवं गर्भकल्याणक का प्रतिफल दर्शाया गया है। -5-5
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy