________________ तीर्थङ्कर अरहनाथ और उनकी पञ्चकल्याणक भूमियाँ - डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन, सनावद जैनधर्म-परम्परानुसार अर (अरह) नाथ अठारहवें तीर्थङ्कर हैं। वे कामदेव एवं चक्रवर्ती थे। महाकवि श्री जगत्राथ ने अपने 'चतुर्विंशति सन्धानमहाकाव्य' (श्लोक 19) में उन्हें वृषभजिन, मुनिसुव्रतजिन, अजांक, जगनाथधी आदि विशेषणों से सम्बोधित किया है। आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण (पर्व 1/11) में अरहनाथ भगवान् को “अशेषक्लेशनिर्मोक्षपूर्वसौख्यारणादरम्' अर्थात् समस्त दुःखों से मुक्ति पाकर अनन्त सुख प्राप्त करने वाले तीर्थङ्कर के रूप में नमस्कार किया है। स्वयम्भू स्तोत्र के अनुसार न संस्तुतो न प्रणतः सभायां, यः सेवितोऽन्तर्गण पूरणाय। पदच्युतैः केवलिभिर्जिनस्य, देवाधिदेवं प्रणमाम्यरं तम्।।१८।। अर्थात् जिन जिनदेव की सभा में अविनाशी पद प्राप्त केवली जिन्हें न नमस्कार करते थे, और न जिनकी स्तुति करते थे; किन्तु अन्तर्गण की पूर्ति के लिए जो उनके द्वारा आदर प्राप्त करते थे, उन देवाधिदेव अरहनाथ जिन को मैं नमस्कार करता हूँ। हरिवंशपुराण में आचार्य जिनसेन ने चतुर्विंशति तीर्थङ्करों की स्तुति के क्रम में अरनाथ तीर्थङ्कर की स्तुति करते हुए लिखा है कि नमोऽष्टादशतीर्थन प्राणिनामिष्टकारिणे। चक्रपाणि जिनाराय निरस्तदुरितारये।। (प्रथम सर्ग, श्लोक-२०) अर्थात् जो अठारहवें तीर्थङ्कर थे, प्राणियों का कल्याण करने वाले थे और जिन्होंने पापरूपी शत्रु को नष्ट कर दिया था; उन चक्ररत्न के धारक श्री अरनाथ जिनेन्द्र के लिए नमस्कार हो। आचार्य यतिवृषभ प्रणीत 'तिलोय पण्णत्ती' में तीर्थङ्कर अरहनाथ के जीवनवृत्त विषयक जानकारियाँ इस प्रकार प्राप्त होती हैं 1. गर्भ कल्याणक- तीर्थङ्कर अरहनाथ का अवतरण अपराजित नामक विमान से हुआ था। (4/530) हस्तिनापुर में राजा सुदर्शन की रानी मित्रा के गर्भ में आपका आगमन हआ (4/550) / यह तिथि फाल्गन कृष्ण तृतीया थी। २.जन्मकल्याणक- तीर्थङ्कर अरहनाथ हस्तिनापुर में पिता सुदर्शन राजा और माता मित्रा से मगसिर शुक्ला चतुर्दशी को रोहिणी नक्षत्र में अवतीर्ण हुए मग्गसिर-चोहसीए, सिद-पक्खे रोहिणीसु अर-देवो। णागपुर संजणिदो, मित्ताए सुदरिसणावणिंदेसुं।। 4/550 / / वह कुरुवंश में उत्पन्न हुए थे। उनके जन्म होने पर सौधर्म इन्द्र ने जन्मकल्याणक का भव्य महोत्सव