SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अयोध्या नगरी एवं श्री सम्मेद शिखर तीर्थराज को आपकी कल्याणक भूमि बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके इसी महान् व्यक्तित्व को आलेखित कर स्वनामधन्य आचार्यों ने अपनी लेखनी को सार्थक किया है जिनमें आचार्य यतिवृषभ, समन्तभद्र, आचार्य गुणभद्र, हेमचन्द्र, शीलांक, आशाधर, अमरचन्द, पूज्यपाद आदि प्रमख हैं। जैन शिल्पकारों को भी भगवान अभिनन्दननाथ के व्यक्तित्व ने प्रभावित किया अनेक तीर्थक्षेत्रों पर उनकी मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गयी जिनमें कुण्डलपुर, खजुराहो, मंगलपुर, खण्डगिरि आदि प्रमुख हैं। उनकी जन्मभूमि अयोध्या में तो उनकी टोंक एवं मूर्तियाँ स्थापित हैं। विशेषकर भगवान् अभिनन्दननाथ को समर्पित अतिशय क्षेत्र मंगलपुर उनकी यशोगाथा को प्रकीर्तित कर रहा हैं। मालवा देश के मंगलपुर में प्रताप फैलाने वाले अभिनन्दननाथ की प्रतिमा को म्लेच्छों ने तोड़ दी थी जो पुन: अपने आप जुड़ गयी। उसके कारण अनेक उपद्रव नष्ट हुए। प्रस्तुत आलेख को तीन तालिकायों से संयुक्त किया गया है जिसमें भगवान् अभिनन्दननाथ का संक्षिप्त परिचय, उनके समवशरण का विवरण एवं मत-वैभिन्न को निरूपित किया गया है एवं कुण्डलपुर एवं खण्डगिरि में स्थापित भगवान् अभिनन्दननाथ की मूर्तियों के छायाचित्रों से संयुक्त है। इससे भली-भाँति स्पष्ट होता है कि भगवान् अभिनन्दननाथ का व्यक्तित्व जैन-साहित्य एवं शिल्प में विविधता के साथ आलेखित एवं रूपायित है। आचार्यों एवं शिल्पकारों दोनों को ही उनके अतिशयकारी एवं मंगलकारी रूप ने आकर्षित किया है जिससे कि आचार्यों ने उनके व्यक्तित्व का वर्णन कर अपनी लेखनी को सार्थक माना है वहीं शिल्पकारों ने आपके व्यक्तित्व को अंकन कर अपनी छैनी एवं जीवन को सार्थक किया है। उसी साहित्य से, शिल्प से प्रेरणा प्रदान कर जनसामान्य को अपने आत्मविकास की यात्रा का मार्ग प्रशस्त हो सका है। भव्य आत्मायें इसी से प्रेरणा ग्रहण कर, आदर्श चरित्रों का अनुकरण कर मोक्षमार्ग का अवलम्बन ग्रहण करती हैं एवं अपना पथ प्रशस्त करती है। भगवान् अभिनन्दननाथ का व्यक्तित्व भव्य आत्माओं के लिए दीपस्तम्भ है। . -2-5
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy