SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और भरत के छोटे भाई वृषभसेन दीक्षित होकर भगवान् के प्रथम गणधर बने। ब्राह्मी और सुन्दरी भी दीक्षित होकर आर्यिका संघ की प्रमुखा बनीं। श्रुतकीर्ति प्रथम श्रावक और प्रियाव्रता नाम की स्त्री श्राविका बनी। इस अवसर्पिणी काल में भरत के भाई अनन्तवीर्य प्रथम मोक्षगामी बने। भगवान् ऋषभदेव ने आजीवन हर कदम पर प्रायोगिक जीवन जिया। सर्वज्ञता प्राप्ति के बाद जनपद कल्याणार्थ आर्य और अनार्य देशों में बहुत लम्बे विहार किये। अन्त में उन्होंने कैलाश पर्वत से निर्वाण पद प्राप्त किया। ऋषभदेव की सम्पूर्ण आयु 84 लाख पूर्व की थी। भगवान् वृषभ का जीवनवृत्त जितना व्यापक है उतना ही गहरा-गम्भीर। आचार्य जिनसेन द्वारा रचित आदिपुराण में उनका वर्णन संस्कृत-साहित्य की अमूल्य धरोहर है। इसमें इतिहास की प्रस्तुत पारदर्शिता, महाकाव्य की गुणवत्ता, धर्मशास्त्र की विधि, राजनीति की नीति, आचार की संहिता, प्रजा की हित कामना, व्यक्ति, व्यवस्था और व्यवहार संचालन की पद्धति, दर्शन की मीमांसा आदि जीवन की हर विधा से जुड़ी व्याख्या द्रष्टव्य है। भगवान् ऋषभदेव का उदात्त चरित्र-चित्रण न केवल साहित्यिक भाव में गुम्पित महाकाव्य है अपितु अध्यात्म का एक अनूठा महाग्रन्थ है जो हर भव्य प्राणी के लिए कल्याण पथ का पाथेय है। -26
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy