________________ मूर्ति-निर्माण अथवा प्रतिष्ठा-कार्य हों और चाहे प्रशासन-सम्बन्धी कार्य हों, वहाँ की जागृत नारियों ने पुरुषों के समकक्ष ही शाश्वत-मूल्य के कार्य किये हैं। ___ आज भारत की राजनैतिक पार्टियाँ भले ही महिलाओं के आरक्षण एवं समानाधिकार प्रदान करने के लिए नारे लगाते-लगाते वर्षों तक नारी-समाज को छल-छद्म या शब्दों के चक्रव्यूह में उलझाये रखें; किन्तु कर्नाटक की आदर्श राज्य-प्रणाली ने उसे सातवीं-आठवीं सदी से बिना किसी रोक-टोक के समानाधिकार दे रखें थे। कर्नाटक के सामाजिक इतिहास के निर्माण में योगदान करने वाली ऐसी सैकड़ों सत्रारियाँ हैं, जिनकी इतिहासपरक प्रशस्तियाँ, वहाँ के शिलालेखों, मूर्तिलेखों एवं स्तम्भलेखों में अंकित हैं तथा वहाँ कि किंवदन्तियों, कहावतों एवं लोकगाथाओं में आज भी जीवित हैं; किन्तु यह खेद का विषय है कि अभी तक उसका सर्वाङ्गीण सर्वेक्षण एवं समग्र मूल्यांकन नहीं हो सका है। उपलब्ध सन्दर्भ-सामग्री में से सभी श्राविकाओं का यहाँ परिचय दे पाना तो सम्भव नहीं; किन्तु कुछ (श्राविकाओं) का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। जैन-संस्कृति एवं इतिहास के क्षेत्र में उनके बहुआयामी संरचनात्मक योगदानों के कारण उन्होंने जैन समाज को जो गौरव प्रदान किया, वह पिछले लगभग 1300 वर्षों के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है, जिसे कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकेगा। आवश्यकता इस बात की है यदि कोई स्वाध्यायशीला विदुषी प्राध्यापिका इस धैर्यसाध्य क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्तर का विस्तृत शोधकार्य करे, तो मध्यकालीन जैन महिलाओं के अनेक प्रच्छन्न ऐतिहासिक कार्यों को तो प्रकाश-दान मिलेगा ही, भावी पीढ़ी को भी अपने जीवन को सार्थक बनाने हेतु नयी-नयी प्रेरणाएँ मिल सकेंगी। -16/