________________ ब्रह्म जिनदास विरचित : 'भद्रबाहु रास' (श्रुतकेवली भद्रबाहु दिव्यावदान के सन्दर्भ में) - डॉ. प्रेमचन्द्र रांवका, जयपुर इन्द्रभूति गौतम गणधर ने भगवान् महावीर के उपदेशों को जिन बारह अंगों में निबद्ध कियाथा, उनमें १२वां अंग दृष्टिवाद द्रव्यानुयोग से विशेष रूप से सम्बद्ध था। इस अंग के अन्तिम ज्ञाता एकमात्र पञ्चम श्रुतकेवली भद्रबाहु थे। अन्तिम सम्राट चन्द्रगुप्त इन्हीं से दीक्षित थे। २४वें तीर्थङ्कर श्रीवर्द्धमान महावीर के आठवें उत्तराधिकारी के रूप में गौरव प्राप्त अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु मुनीश्वर के पावन चरित्र को कविवर ब्रह्म जिनदास ने अपनी काव्य-रचना का प्रतिपाद्य बनाया है। महाकवि ब्रह्म जिनदास १५वीं शताब्दी के संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी व गुजराती-भाषा-साहित्य के उद्भट विद्वान् थे। वे संस्कृत के प्रसिद्ध महाकवि भट्टारक सकलकीर्ति के अनुज व शिष्य थे। इन्होंने संस्कृत-भाषा के 15 एवं हिन्दी-भाषा में 70 बृहद् लघुकाव्यों के प्राणयन से मां भारती के भण्डार को समद्ध किया है। संस्कृत में काव्य-रचना के साथ लोकभाषा में रचना से इनका विशेष अनुराग था। ब्रह्म जिनदास ने सामान्यजन के बोध की दृष्टि से तत्कालीन हिन्दी-भाषा में अधिक रचनाएं की। रामचरित्र, हरिवंशपुराण एवं जम्बूस्वामी चरित्र विशाल ग्रन्थों का प्रणयन संस्कृत एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में किया है। इनका सं. 1508 में रचित 'रामरास", तुलसीकृत रामचरितमानस से 150 वर्ष पूर्व हिन्दी-भाषा-साहित्य का प्रसिद्ध महाकाव्य है; जिसका उल्लेख हिन्दी के विदेशी विद्वान् फादर कामिल बुल्के ने अपने ‘रामकाव्य-परम्परा' ग्रन्थ में किया है। ब्रह्म जिनदास ने प्रथमानुयोग को अपनी रास संज्ञक रचनाओं का आधार बनाया है। गौतमस्वामी रास, भद्रबाहु रास, यशोधर रास, हरिवंश रास, नेमीश्वर रास, श्रेणिक रास, जीवंधर रास, जम्बूस्वामी रास, हनुमंत रास, धन्यकुमार रास, भविष्यदत्त रास आदि ऐसी ही रास संज्ञक रचनाएं हैं। ये हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि हैं। “भद्रबाहु रास" ब्रह्म जिनदास का ऐतिहासिक खण्डकाव्य है। अन्तिम पञ्चम श्रुतकेवली भद्रबाहु के जीवन चरित्र पर आधारित संस्कृत-हिन्दी में प्राय: विकीर्ण साहित्य उपलब्ध होता है। प्रबन्धरूप में रचित “भद्रबाहु रास" ब्रह्म जिनदास की मौलिक रचना है। कथा-साम्य तो प्राय: साहित्य-सृजन का सर्वत्र ही सम्बल होता है। यह रास अपभ्रंश भाषा साहित्य के उत्तरकालीन मरुगुर्जर भाषा प्रभावित छन्दों- वस्तु, भास से युक्त विभिन्न रागों के 178 पद्यों में अनुस्यूत ऐतिहासिकखण्डकाव्य की सीमा में आता है। इसमें पञ्चम श्रुतकेवली भद्रबाहु के पावनचरित्र को आख्यायित किया गया है। भद्रबाहु रास का प्रारम्भ, सर्वप्रथम आठवें तीर्थङ्कर भगवान् चन्द्रप्रभ, मां सरस्वती, गणधर स्वामी और गुरु भट्टारक सकलकीर्ति को प्रणाम कर भव्य जनों के हितार्थ किया गया है। रास के प्रारम्भ में सोमशर्मा की पत्नी सोमश्री से भद्रबाहु के जन्म एवं बाल्यकाल का वर्णन हुआ है। गुरु गोवर्द्धन से भद्रबाहु शिक्षित और दीक्षित होते हैं; उनके बाद वे ही आचार्य पदासीन होते हैं। पाटलीपुत्र में वे सम्राट चन्द्रगुप्त को सोलह स्वप्नों का फल बताते - 135