SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसके पश्चात् 21 फरवरी 1981 में जो महामस्तकाभिषेक हुआ, वह सहस्रावधि-महामस्तकाभिषेक महोत्सव था। इस महोत्सव का महत्त्व पिछले महोत्सवों से बहुत अधिक रहा। कर्नाटक राज्य के उस समय के माननीय मुख्यमन्त्री गुंडुराव और उनके सहयोगी अनेक मन्त्रियों ने इस महोत्सव को राजकीय महोत्सव माना और राज्य की ओर से उसकी सारी तैयारियां की गयी। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी और अनेक केन्द्रीय मन्त्रीगण भी उक्त अवसर पर पहुँचे थे। 19 दिसम्बर 1993 से प्रारम्भ इतिहास का नवम महामस्तकाभिषेक बीसवीं शताब्दी का अन्तिम आयोजन होने के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण रहा। सबसे पहले श्री क्षेत्र पर महामहिम राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा का आगमन हुआ। उन्होंने मण्डप की वेदी पर बाहुबली भगवान् की पूजा करके मेले का उद्घाटन किया। बाद में प्रधानमन्त्री श्री पी.वी. नरसिम्हाराव ने पुष्पवर्षा द्वारा देश की जनता का नमन गोमटस्वामी के चरणों तक पहुँचाया। चारित्र-चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी की परम्परा के विद्यमान आचार्य श्री वर्द्धमान सागरजी संघ सहित उत्सव में विराजमान रहे। दूरदर्शन के राष्ट्रीय कार्यक्रम में मस्तकाभिषेक का जीवन्त प्रसारण हुआ। श्री नीरज जैन, डॉ. श्रीमती सरयू दोशी और प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश की टीम ने हिन्दी और अंग्रेजी में चार घण्टों तक श्री क्षेत्र का इतिहास रेखांकित करते हुए गोमटस्वामी के सतरंगे अभिषेक का आँखों देखा विवरण प्रसारित किया। श्रवणबेलगोला के लिए यह उच्चस्तरीय प्रसारण एक ऐसी उपलब्धि थी जिसने विश्व के कोने-कोने तक गोमटेश्वर की मनमोहक छवि और उज्ज्वल कीर्ति की ध्वजाएँ फहरा दी। गोमटेश्वर की मूर्ति कवियों, भावुक हदयों के लिए सदा नवीन कल्पनाओं को प्रदान करती है। बारहवीं सदी के विद्वान् वोधण पण्डित ने 'नक्षत्र मालिका' नाम की 27 पद्यमय कविता द्वारा भगवान् का गुणगान कन्नड़ भाषा में किया है। इसके एक पद्य में कवि बड़ी मार्मिक बात कहता है कि - “अत्यन्त उन्नत आकृति वाली वस्तु में सौन्दर्य का दर्शन नहीं होता है। जो अतिशय सुन्दर वस्तु होती है वह अतीव उन्नत आकार वाली नहीं होती है; किन्तु गोमटेश्वर की मूर्ति में यह लोकोत्तर विशेषता है कि अत्यन्त उन्नत आकृतिधारी होने पर भी अनुपम सौन्दर्य से विभूषित है।" यथार्थ में महिमाशाली भगवान् गोमटेश्वर का जितना भी वर्णन किया जाय थोड़ा है। उनके दर्शन का आनन्द स्वानुभव का विषय है, जिसे मनुष्य कभी भी भूल नहीं सकता। भारत की प्राचीन संस्कृति एवं त्याग और तपस्या की महान् स्मारक यह गोम्मटेश्वर की महामूर्ति युगों-युगों तक विश्व को अहिंसा और त्याग की शिक्षा देती रहेगी। सा -11--
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy