SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवान् बाहुबली : चित्रकला के परिप्रेक्ष्य में ___ - प्रो. डॉ. विमला जैन 'विमल', फिरोजाबाद भगवान् बाहुबली आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव के पुत्र तथा महारानी सुनन्दा के नन्दन भरत चक्रवर्ती के अनुज, पोदनपुर के सम्राट थे। उनका रूप लावण्य अद्वितीय था, अत: प्रथम कामदेव के रूप में पौराणिक पुरुष थे। सर्वार्थसिद्धि से च्युत हो इक्ष्वाकु वंश में जन्म ले चरम शरीर युग के प्रथम सिद्धेश्वर के रूप में अनुपमेय व्यक्तित्व के धनी थे। पिता प्रदत्त साम्राज्य के संरक्षक तथा स्व-प्रजा के सुख-शान्ति के संवर्धक थे। आदिगुरु ऋषभेश्वर ने उन्हें कामनीति, आयुर्वेद, स्त्री-पुरुष के लक्षण ज्ञान तथा अश्व-गज आदि के लक्षण जानने के तन्त्र एवं रत्न परीक्षा के सम्पूर्ण ज्ञान में पारङ्गत किया था। शान्तिप्रिय सौम्य स्वाभिमानी सम्राट के रूप में सत्ता सुख का लौकिक जीवन हर्षानन्द से व्यतीत कर रहे थे। अग्रज भरत अयोध्यापति षट् खण्ड पृथ्वी विजय कर चक्ररत्न के साथ गृह नगर में प्रवेश करते हैं, परन्तु चक्र रूक जाता है अयोध्या में प्रवेश नहीं करता। अभी बन्धु-बान्धवों को जीतना शेष है। ___भरतेश्वर के सभी अनुज सत्ता छोड़ जैनेश्वरी दीक्षा ले लेते है, परन्तु गोमटेश बाहुबली अधीनता ग्रहण नहीं करते है, अत: शक्ति परीक्षण के लिए युद्ध का बिगुल बज जाता है। मन्त्रियों के सद्परामर्श से हिंसक युद्ध, रक्त-पात टल जाता है और भरत-बाहुबली को आपस में शक्ति परीक्षण को कहा जाता है। शान्तिप्रिय परामर्शदाता जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध तथा मल्लयुद्ध यह तीन प्रतियोगिता रखते हैं। गोमटेश बाहुबली सवा पाँच धनुष | भरतेश्वर मात्र पाँच धनष उत्तंम थे। चक्रवर्ती का बल उसकी सेना, अस्त्र-शस्त्र परिकर में होता है। यहाँ दोनों भाइयों को निहत्थे शारीरिक शक्ति परीक्षण को उतारा गया था। तीनों प्रतियोगिताओं में महाबलेश्वर गोमटेश विजयी हो जाते हैं। अन्तिम युद्ध मल्ल क्रीड़ा में बाहुबली भरत को ऊँचा उठा स्नेह एवं आदर से नीचे जमीन पर खड़ा कर देते हैं। चारों तरफ से गोमटेश विजय की गूंज सुनायी देने लगती है। इस अनहोनी हार से भरत तिलमिला जाते है और चक्ररत्न चला देते हैं। चक्ररत्न बाहुबली की प्रदक्षिणा कर उन्हीं के पास रूक जाता है। भरत अत्यधिक लज्जित होते हैं तथा बाहुबली को वैराग्य हो जाता है। वे अग्रज के चरण स्पर्श कर इस अपमानजनक स्थिति के लिए क्षमा याचना करते हैं तथा तीर्थङ्कर ऋषभदेव के समवशरण में जा दीक्षा ले लेते हैं। एक वर्ष का 'प्रतिमायोग' ले अविचल एकासन से ध्यानस्थ हो जाते हैं। एक वर्ष होते-होते भरत चक्रवर्ती आ उनकी स्तुति करते हैं और उसी समय उन्हें केवलज्ञान की उपलब्धि हो जाती है। इस अनुपमेय उदात्त कथानक को आदिपुराण (सचित्र) में महाकवि पुष्पदन्त ने अपभ्रंश-भाषा में महाकाव्य के रूप में लिखा है। इसका आधार महापुराण है। इसकी रचना ई.सन् 959 से 965 के मध्य हुई है। इस हस्तलिखित ग्रन्थ में 344 पत्र (687 पृष्ठ) तथा विषयानुकूल 541 रंगीन चित्र बनाये गये हैं। चित्रकार हरिनाथ कायस्थ ने दृष्टान्त चित्र के रूप में इस अनूठे कथानक को चारुशिल्प से सजा अद्वितीय तथा महान् दुर्लभ कृति बना दिया है। भरत बाहुबली कथानक 60-65 पृष्ठों में है और 50-55 चित्र इसी कथानक के है। प्रस्तुत आलेख में भगवान् बाहुबली के चित्रों की लोकप्रियता तथा प्राचीनता के विषय में भी बताया गया है। -112
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy