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________________ बाहुबलि-चरिउ : एक अप्रकाशित अपभ्रंश रचना - डॉ. कस्तूरचन्द सुमन, श्रीमहावीरजी अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद् स्वर्णजयन्ती वर्ष समापन समारोह के अवसर पर जून 2001 में प्रकाशित ज्ञानायनी के पृष्ठ 146-147 में डॉ. श्री नेमिचन्द्र जी ज्योतिषाचार्य आरा ने अपने अध्यक्षीय भाषण में अनेक अप्रकाशित अपभ्रंश रचनाओं का नामोल्लेख किया है जिनमें कवि धनपाल रचित चौदहवीं शती की रचना बाहुबलिचरिउ का नाम भी सम्मिलित किया है। उन्होंने इसके प्रकाशन को प्राथमिकता दिये जाने की आवश्यकता दर्शायी है। प्रस्तुत ग्रन्थ अठारह सन्धियों में है। प्रत्येक पृष्ठ में नौ पंक्तियाँ हैं। कम से कम इसके हिन्दी अर्थ सहित सम्पादन में ढ़ाई वर्ष का समय लगने की सम्भावना है। इस पावन अवसर पर इस अप्रकाशित रचना के प्रकाशन की ओर ध्यान देना आवश्यक है। (2) श्रवणबेलगोला के प्रकाशित शिलालेखों के सम्बन्ध में सुझाव श्रवणबेलगोल के अभिलेख भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली द्वारा जैन शिलालेख संग्रह, भाग प्रथम में प्रकाशित हुए हैं। अभिलेखों के मूलपाठ पंक्तिबद्ध नहीं हैं। अनुस्वारों के स्थान पर अनुनासिकों का व्यवहार हुआ है। यही नहीं मूलपाठों में भी कहीं-कहीं परिवर्तन-परिवर्द्धन किया गया है। ___ मैंने चन्द्रगिरि के समस्त लेखों में सुधार किया है। उनके मूलपाठ कर्णाटिका भाग दो के अनुसार लिपिबद्ध किये है। मूलपाठों का हिन्दी अनुवाद भी दिया है। प्रयुक्त श्लोकों में व्यवहृत छन्दों का परिचय देते हुए मूलपाठों की वर्तमान स्थिति का नामोल्लेख भी किया है। जो मूलपाठ कन्नड़ लिपि में रहे उन्हें कन्नड़भाषी विद्वान् श्री जागीरदार जी से परामर्श कर लिपिबद्ध किया है। 303 लेख है। यदि इनका भी इस अवसर पर प्रकाशन हो तो संस्कृति की बड़े सेवा होगी। आगे भारतीय जैन अभिलेखों का सांस्कृतिक अध्ययन किया जा सकेगा। कृपया इस सन्दर्भ में भी प्रयत्न कीजिएगा। -- 108 -
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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