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________________ गया है अथोत्तरापथे देशे पुरे पोदननामनि। राजा सिंहस्थो नाम सिंहसेनास्य सुन्दरी।।३।। इससे स्पष्ट होता है कि पोदनपुर नामक नगर उत्तरापथ देश में था। इसी प्रकार कथा 25 में 'तथोत्तरापथे देशे पोदनाख्ये पुरेऽभवत्' यह पाठ है। इससे तो लगता है कि पोदनपुर दक्षिणापथ में नहीं, उत्तरापथ में अवस्थित था। सोमदेव विरचित 'उपासकाध्ययन (यशस्तिलक चम्पू)' में लिखा है 'रम्यकदेशनिवेशोपेतपोदनपुरनिवेशिनो।' अर्थात् रम्यक देश में विस्तृत पोदनपुर के निवासी। यहाँ भी पोदनपुर को रम्यक देश में बताया है। पुण्यास्रव कथाकोष कथा-२ में 'सुरम्य-देशस्य पोदनेश' वाक्य है। अर्थात् उसमें भी पोदनपुर को सुरम्य देश में माना है। गोम्मटसार की गाथा 968 की संस्कृत टीका में तीन को नमस्कार किया गया है - (1) गोम्मट संग्रहसूत्र, (2) चामुण्डराय के जिनालय ऊपर स्थित गोम्मट जिण (नेमीश्वर का जिनबिम्ब) और (3) चामुण्डराय के द्वारा निर्मित 'दक्षिण कुक्कुट जिन'। यथा गोम्मट संगहसुत्तं गोम्मटसिहरुवरि गोम्मटजिणो य। गोम्मटराय- विणिम्मिय दक्खिण कुक्कुडजिणो जयदु।। (गाथा, 968) यहाँ पर भगवान् बाहुबली की मूर्ति को ही दक्षिण-कुक्कुड जिन कहा गया है। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि श्रवणबेलगोला में स्थित बाहुबली की मनोहारी प्रतिमा दक्षिण कुक्कुड जिन के रूप में प्रसिद्ध हुई तो उसके पूर्व उत्तर भारत के पोदनपुर (तक्षशिला) आदि के समीप कोई मूर्ति उत्तर कुक्कुड जिन के नाम से विख्यात रही होगी, जिसके कारण दक्षिण भारत की बाहुबली प्रतिमा को दक्षिण कुक्कुड जिन उत्तर भारत में पोदनपुर (तक्षशिला) के समीप एक कुक्कुटगिरि नामक प्रसिद्ध पर्वत होने का उल्लेख ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी के प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि ने अपने ग्रन्थ में किया है। उत्तर भारत की इस कुक्कुटगिरि पर ही सम्भवत: बाहुबली ने तपस्या की थी और इसी दौरान उस पर्वत पर रहने वाले कुक्कुट सर्पो ने उनके चरणों में बामियाँ बनायी होंगी। इन्हीं के कारण वह प्रदेश आवागमन के लिए दुर्गम माना जाने लगा था। इसी कुक्कुटगिरि पर तपस्या और कुक्कुट सॉं से घिरे हुए बाहुबली उत्तर भारत के कुक्कुट जिन कहे जाते रहे होंगे। तभी चामुण्डराय के समय श्रवणबेलगोला के बाहुबली के 'दक्षिण कुक्कुटाजिन' कहा गया है। .-106
SR No.032866
Book TitleJain Vidya Ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain
PublisherGommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti
Publication Year2006
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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