________________ 72 चित्त-समाधि : जैन योग तोयमिव नालियाए तत्तायसभायणोदरत्थं वा। परिहाइ कमेण जहा तह जोगिमणोजलं जाण // 7 // एवं चिय वयजोगं निरुभइ कमेण कायजोगंपि।। तो सेलेसोव्व थिरो सेलेसी केवली होइ // 76 // उप्पाय-ट्ठिइ-भंगाइपज्जयाणं जमेगवत्थुमि / नाणानयाणुसरणं पुव्वगयसुयाणुसारेणं // 77 // सवियारमत्थ-वंजण-जोगंतरओ तयं पढमसुक्कं / / होइ पुहुत्तवितक्कं सवियारमरागभावस्स // 7 // जं पुण सुणिप्पकंपं निवायसरणप्पईवमिव चित्तं / उप्पाय-ठिइ-भंगाइयाणमेगंमि पज्जाए // 79 // अवियारमत्थ-वंजण-जोगंतरओ तयं बितियसुक्कं / / पुव्वगयसुयालंबणमेगत्तवितक्कम वियारं // 8 // निव्वाणगमणकाले केवलिणो दरनिरुद्धजोगस्स / सुहुमकिरियाऽनियट्टि तइयं तणुकायकिरियस्स // 1 // तस्सेद य सेलेसीगयस्स सेलोव्व णिप्पकंपस्स। वोच्छिन्नकिरियमप्प डिवाइज्झाणं परमसुक्कं // 2 // पढमं जोगे जोगेसु वा मयं बितियमेयजोगंमि / तइयं च कायजोगे सुक्कमजोगंमि य चउत्थं // 3 // जह छउमत्थस्स मणो झाणं भण्णइ सुनिच्चलो संतो। तह केवलिणो काओ सुनिच्चलो भन्नए झाणं // 4 // पुव्वप्पओगओ चिय कम्मविणिज्जरणहेउतो यावि / सद्दत्थबहुत्ताओ तह जिणचंदागमाओ य॥५॥ चित्ताभावेवि सया सुहुमोवरय किरियाइ भण्णंति / जीवोवओगसब्भावओ भवत्थस्स झाणाइं।८६॥ सुक्कज्झाणसुभावियचित्तो चितेइ झाणविरमेऽवि / णिययमणुप्पेहाओ चत्तारि चरित्तसंपन्नो // 7 // आसवदारावाए तह संसारासुहाणभावं च। भवसंताणमणन्तं वत्थूणं विपरिणामं च // 8 // सुक्काए लेसाए . दो ततियं परमसुक्कलेस्साए / थिरयाजियसेलेसि लेसाईयं परमसुक्कं // 86 //