________________ 70] ऐतिहासिक स्त्रियाँ तदनुसार राजकुमारी गुणमालाने जाकर कुमारी रयनमंजूषासे महाराज श्रीपालका सब वर्णन तथा धवलसेठकी कुटिलताकी सब कथा सुनी। परस्पर वार्तालाप करती हुई दोनों कुमारी राजाके समीप आयीं और यथार्थ हाल समझाकर राजा श्रीपाल को बन्धनसे मुक्त कराया। धवलसेठकी सम्पूर्ण कुटिलता प्रकाशित हो गई और उसके किये अनुसार राजाने उसे अत्यंत कठोर दण्ड देनेकी इच्छा प्रकट की, परंतु शुद्धचित्त दयालु राजा श्रीपालने जब अपने ही कारणसे धवलसेठका सर्वस्व नाश होता देखा तो उसको क्षमा कर दिया। इस तरह राजा श्रीपाल राजकुमारी रयनमंजूषाको साथ लिए कई देशोंका पर्यटन करते हुए उज्जैन जाकर रानी मैनासुन्दरीको ले अत्यन्त विभूतिके साथ चम्पापुर अपनी पुरानी राजधानीमें आकर आनन्दसे रहने लगे। बहुत समय सुखके साथ रहनेके पश्चात् एक दिन मेघपटलोंको छिन्नभिन्न होते देख राजाको वैराग्य हो गया और वे दीक्षा लेकर जंगलोंमें तप करनेके लिए चले गए। इधर जब रयनमंजूषाने देखा कि हमारे पतिदेवने सर्वकल्याणकारी जैनेन्द्री दीक्षा धारण कर ली है तो अब पतिके बिना संसारमें नारियोंका रहना व सांसारिक सुखोंको भोगा करना किस कामका? ऐसा विचार कर पूर्व घटनाओंके स्मरण होनेसे संसारका असार स्वरूप जान, किसी आर्जिकाके समीप जाकर दीक्षा ग्रहण की और श्रावकोंके पञ्च अणुव्रत, चार शिक्षाव्रत तथा तीन गुणव्रत इस प्रकार द्वादश व्रतोंका बड़ी योग्यतासे अतीचार और अनाचार रहित पालन किया। अनित्य अशरणादि द्वादश भावनाओंकी भावना करके क्षुधा तृषादि परीषहोंको भलीभांति सहन करने लगी, एवं निरन्तर