________________ 44] ऐतिहासिक स्त्रियाँ कर नारद तो लम्बे पड़े परंतु राजा पद्मनाभका चित्त भ्रष्ट हो गया। उसके यहां बड़ा अनर्थ हो गया। राजाने बड़े२ कठिन परिश्रमोंसे किसी देवको वशकर रानी द्रौपदीजीको सोते हुए पलंग सहित अपने यहां मंगा लिया। __ बैचारी निष्पाप द्रौपदी कुछ भी नहीं जानती थी कि मेरा हरण कौन दुष्ट कर रहा है, मुझ पर कौनसी विपत्ति आ रही है? इस सतीकी यकायक निंद्रा टूटी तो देखती है कि एक राजा इसकी शय्यापर बैठा बैठा बड़े हावभावके वचन बोल रहा है। द्रौपदीजीने ख्याल किया कि शायद स्वप्न देख रही हूं इससे उन्होंने पुनः मुख ढक लिया। पास बैठा दुष्ट पद्मनाभ इस भेदको समझ गया। उसने कहा-"उठो प्रिये! निद्रा तजो, यह स्वप्न नहीं है। इत्यादि इत्यादि वचन कहें। इन्हें सुनकर द्रौपदीजी प्रतिबोधित हो गई। सब मामला समझमें आ गया। आह! आज इस सतीके उपर कैसा उपसर्ग हो रहा है। यों बड़े आर्तनादसे विलाप कर रोने लगी। इनकी गगनभेदी आवाजसे पद्मनाभका सारा महल फटने लगा। मानो काष्ट पत्थर भी रुदन करने लगे। उक्त सतीने पद्मनाभको मिलापके साथ बहुत कुछ समझाया, परंतु वह पापार्थी कब शांत होनेवाला था? अंतमें जब देखा कि अन्य उपाय रहित होनेपर द्रौपदी प्राण दे देगी तब वह दुष्ट उठकर चला गया और यह कह गया कि 1 मासमें जरूर प्रसन्न हो जाना। ____द्रौपदीजीने ख्याल किया कि एक मास बहुत है। इसमें धर्म साधनादि कितने ही उपाय मैं भी कर सकूगी और योद्धा पांडव भी आकर इस दुष्टका अवश्य ही निग्रह करेंगे। बस, इस विचारसे वे खानपानादि त्याग जिन मंदिरमें चली गई और अत्यन्त विश्वास साहस सहित भगवद् ध्यान करने लगीं।