________________ श्रीमती मैनासुन्दरी [31 vacassicacanciscariasanacancipasasaramparancare करना पड़ा। तो भी वे उस पवित्र तीर्थके दर्शन न कर सके और वापिस अपनी राजधानीको लौट आये। महारानी चेलनाने तो निर्विघ्नतासे तीर्थकी वंदना की और अपने स्थानको आई। अपनी अवस्थाको पूर्ण होती देख युवराज कुणिकको राज्यभार देकर महाराजने एकांतमें रहकर ईश्वरोपासना करना शुरू की। परंतु राज्यभारसे मत्त होनेके कारण कुणिककी प्रवृत्ति बिगड़ गई। इसलिये राजा श्रेणिकको अन्त समय सुख नहीं हुआ। थोडे ही दिनोके बाद रानी चेलना भी दीक्षा धारणकर समाधिमरण करके स्वर्ग सिधारी। देखिये! राजकुमारी चेलनाने किस कौशलसे अपने स्वामीको सत्यधर्ममें श्रद्धावान् कराया तथा जगत्का पूज्य बनाया, जो कि एक अनुकरणीय कार्य है। सती शिरोमणि ४-श्रीमती मैनासुन्दरी "साध्वी समीचीना सदा, जिन भक्तिसे परिभाविता। कर चक्रवर दृढ नेमसे, पति प्रीतिसे परिप्लाविता॥ जिसने अलौकित शक्तिसे, पति कुष्टको वारण किया। वह धन्य रमणी रत्न है, श्रीपाल नृपवरकी प्रिया॥" ___ महारानी मैनासुन्दरी इसी भारतवर्षकी विश्वविदित उज्जैन नगरीके राजा पहुपालकी कनिष्ठ पुत्री थी। इनकी ज्येष्ठ भगिनी का नाम सुरसुन्दरी था। दोनों राजकुमारियोंकी शिक्षाका प्रबन्ध उनकी इच्छानुसार क्रमशः शैव और जैन पुरोहितको दिया गया।