________________ 76 क्षयोपशम भाव चर्चा परिणत होकर उदय में आते हैं; उन सर्वघाति स्पर्द्धकों का अनन्तगुण-हीनत्व ही 'क्षय' कहलाता है और उनका देशघाति स्पर्द्धकों के रूप से अवस्थान होना 'उपशम' है; उन्हीं क्षय और उपशम से संयुक्त उदय, ‘क्षयोपशम' कहलाता है। (5) धवला, पु. 5 (1/185) ___ कम्मोदये संते ........ खओवसमियो भावो णाम / अर्थ - कर्मों के उदय होते हुए भी जो जीव-गुण का खण्ड (अंग) उपलब्ध रहता है, वह ‘क्षायोपशमिक भाव' है। (6) धवला, पु. 1 (14/177) पञ्चसु गुणेषु ........ प्रत्याख्यानसमुत्पत्तेः। प्रश्न - पाँचों भावों में से किस भाव का आश्रय लेकर, यह प्रमत्त-संयत गुणस्थान उत्पन्न होता है? उत्तर - संयम की अपेक्षा यह ‘क्षायोपशमिक' है। प्रश्न - क्षायोपशमिक किस प्रकार है? उत्तर - क्योंकि वर्तमान में प्रत्याख्यानावरण के सर्वघाति स्पर्द्धकों के 'उदयक्षय' होने से और आगामी काल में उदय में आनेवाले सत्ता में स्थित उन्हीं के उदय में न आने रूप ‘उपशम' से तथा संज्वलन कषाय के उदय से प्रत्याख्यान अर्थात् संयम उत्पन्न होता है; इसलिए ‘क्षायोपशमिक' है। (इसी प्रकार अप्रमत्तसंयत गुणस्थान भी क्षायोपशमिक है। (- और देखिए, धवला, पु.1, 15/180) (7) धवला, पु. 1 (13/175) औदयिकादि पञ्चसुगुणेषु ....... प्रत्याख्यानानुपपत्ते / प्रश्न - औदयिकादि पाँचों भावों में से किस भाव के आश्रय से 'संयमासंयम भाव' पैदा होता है? उत्तर - संयमासंयम भाव क्षायोपशमिक है, क्योंकि अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय के वर्तमानकालिक सर्वघाति स्पर्द्धकों के उदयाभावी क्षय होने से और आगामी काल में उदय में आने योग्य उन्हीं के सदवस्था रूप उपशम होने से तथा