________________ है। 136 क्षयोपशम भाव चर्चा अर्थात् पर के प्रति शुभ-परिणाम पुण्य है और अशुभ-परिणाम पाप है - ऐसा कहा है तथा जो दूसरे के प्रति प्रवर्तमान नहीं है - ऐसा परिणाम, समय में (परमागम में अथवा यथाकाल) दुःख-क्षय का कारण कहा है। __प्रथम तो परिणाम तो दो प्रकार का है - परद्रव्यप्रवृत्त (परद्रव्य के प्रति प्रवर्तमान) और स्वद्रव्यप्रवृत्त; इनमें से परद्रव्यप्रवृत्त परिणाम (पर के निमित्त से विकारी) होने से विशिष्ट परिणाम है और स्वद्रव्यप्रवृत्त परिणाम पर के द्वारा उपरक्त न होने से अविशिष्ट परिणाम है; उसमें विशिष्ट परिणाम के पूर्वोक्त दो भेद हैं - शुभपरिणाम और अशुभपरिणाम; उनमें पुण्यरूप पुद्गल के बन्ध का कारण होने से शुभपरिणाम पुण्य है और पापरूप पुद्गल के बन्ध का कारण होने से अशुभपरिणाम पाप है। अविशिष्ट परिणाम तो शुद्ध होने से एक है, इसलिए उसके भेद नहीं हैं। वह (अविशिष्ट परिणाम) यथाकाल संसार-दुःख के हेतुभूत कम-पुद्गल के क्षय का कारण होने से संसार-दुःख का हेतुभूत कर्म-पुद्गल का क्षयस्वरूप मोक्ष ही (तत्त्वप्रदीपिका) नयविवक्षायां मिथ्यादृष्ट्यादिक्षीणकषायान्तगुणस्थानेषु पुनरशुद्धनिश्चय -नयो भवत्येव। तत्राऽशुद्धनिश्चयमध्ये शुद्धोपयोगः कथं लभ्यत इति शिष्येण पूर्वपक्षे कृते सति प्रत्युतरं ददाति - वस्त्वेकदेशपरीक्षा तावन्नयलक्षणं, शुभाऽशुभ शुद्धद्रव्याऽवलम्बनमुपयोगलक्षणं चेति; तेन कारणेनाऽशुद्धनिश्चयमध्येऽपि शुद्धात्मावलम्बनत्वात् शुद्धध्ये यत्वात् शुद्धसाधकात्वाच्च शुद्धोपयोगपरिणामो लभ्यत इति नयलक्षणमुपयोगलक्षणं च यथासम्भवं सर्वत्र ज्ञातव्यम्। ___ अर्थात् ...... नय की विवक्षा में मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यन्त गुणस्थानों में अशुद्धनिश्चयनय होता ही है। ___वहाँ अशुद्धनिश्चयनय के बीच शुद्धोपयोग कैसे प्राप्त होता है? - ऐसा शिष्य द्वारा पूर्वपक्ष (प्रश्न) किये जाने पर उसके प्रति उत्तर देते हैं - प्रथम तो वस्तु की एकदेश परीक्षा, नय का लक्षण है और शुभ, अशुभ या शुद्ध द्रव्य का अवलम्बन, उपयोग का लक्षण है; इस प्रकार अशुद्धनिश्चय के बीच में भी शुद्धात्मा का अवलम्बन होने से, शुद्ध का साधक होने से शुद्धोपयोग