________________ चतुर्थ चर्चा आगम के आलोक में क्षायोपशमिकसम्यग्दर्शन एवं क्षायोपशमिकचारित्र (1) धवला, पु. 1/400 प्रश्न - क्षायोपशमिक-सम्यग्दर्शन को वेदक-सम्यग्दर्शन', यह संज्ञा कैसे प्राप्त होती है? उत्तर - दर्शन-मोहनीयकर्म के उदय का वेदन करने वाले जीव को वेदक कहते हैं; उसको जो सम्यग्दर्शन होता है, उसे वेदक-सम्यग्दर्शन कहते हैं। प्रश्न - जिनके दर्शन-मोहनीयकर्म का उदय विद्यमान है, उनके सम्यग्दर्शन कैसे पाया जाता है? उत्तर - नहीं, क्योंकि दर्शन-मोहनीय की देशघाति-प्रकृति (सम्यक्-प्रकृति) के उदय रहने पर भी जीव के स्वभावरूप श्रद्धान के एकदेश रहने में कोई विरोध नहीं आता है। (2) धवला, 1/235 'सर्व-जीवावयवेषु क्षयोपशमस्योत्पत्त्यभ्युपगमात्।' अर्थात् जीव के सम्पूर्ण प्रदेशों में क्षयोपशम की उत्पत्ति स्वीकार की गयी है। (3) लब्धिसार, 191/245 (अ) सकलचारित्र 3 प्रकार है - क्षायोपशमिक, औपशमिक व क्षायिक। तहाँ पहला क्षायोपशमिक चारित्र, सातवें व छठवें गुणस्थान विषै पाइये है। ताको जो जीव, उपशम-सम्यक्त्व सहित ग्रहण करे हैं, सो मिथ्यात्व तें ग्रहण करे हैं। ताका तो सर्व विधान, प्रथमोपशम-सम्यक्त्ववत् (तीन करण करि सहित) जानना।