________________ ( 47 ) अभ्यास-४ ( लट् ) 1-+ शब्द नित्य है ऐसा वैयाकरण मानते हैं, पर नेयायिक शब्द को पनित्य मानते हैं। नित्य शब्द को वैयाकरण स्फोट कहते हैं / २-बह' दिन प्रतिदिन शिथिल होती जा रही है। न जाने इसे क्या रोग साये जा रहा है। ३-तुम्हारा यह कहना 'संगत नहीं कि बढ़ा हुमा बल संसार में शान्ति का साधन है। ऐसा बल तो श्मशान की ही शान्ति स्थापित कर सकता है। 4-* जब पर भोर अवर ब्रह्म के दर्शन हो जाते हैं, हृदय की गाँठ खुल जाती है, सारे संशय कट जाते हैं और इस ( द्रष्टा ) के सब कर्म क्षीण हो जाते हैं। 5- अंधेरा मानो शरीर से चिपट रहा है और प्राकाश मानो प्रशन की वर्षा कर रहा है। ६-यह समझ में नहीं पाता है कि मनुष्य अपने भाई बन्युमों के प्रति पाप करने का केसे साहस करता है। जब हम मनुष्य के अत्याचारों को देखते हैं तो कहना पड़ता है कि मनुष्य प्रत्यन्त' कर' है। 7-+ जायदाद का विभाग एक बार ही होता है, कन्या (विवाह में) एक बार ही दी जाती है / ८-मूर्स द्वारा भी अच्छी भूमि पर बोया हुमा बीज फलता फूलता है / धान का समृद्धिशाली होना बोने वाले के गुणों पर निर्भर नहीं है। ह-रात को चमकता हरा चाँद किसे प्यार नहों, सिवाय कामी और चोर के। १०-यदि छात्र को सीखने की इन्सान हो तो गुरु उसे कुछ भी नहीं सिखा सकता / तुम घोड़े को पानी के पास तो से जा सकते हो, पर इसे पानी नहीं पिला सकते यदि इसे प्यास न हो। ११-उसकी बुद्धि ऋचामों में खूब चलती है, पर नन्य न्याय में भटकती है / १२-वेदान्ती लोग कहते हैं कि माशा मसंभव को सम्भव करने में समर्थ है। प्रातिमासिक जगत् का यही कारण है। १३-ये लोग जो जितना कमाते हैं उतना ही खा लेते हैं, अन्त में कष्ट पाते हैं / १४-जन में देखता है कि संसार भर में हिंसा उत्तरोतर बढ़ २-प्रतिज्ञा क्रयादि मा०, सम् नृ तुदा. मा०, मा-स्था भा० मा० / 2-2 साऽनुदिनमङ्गमुव्यते (अङ्ग हीयते ) न बाने केन रोगेण नस्यत इव / ३-पस भ्वा० मा० / ४-४न संगच्छते / ५-५मानवोवानि नृशंसानि वर्तनानि (दारुणानि कर्माणि ) समीक्षामहे। 6-6 इदं बक्तम्यं भवति / कृत्याश्र (3 / 3 / 272) से तव्य प्रत्यय हुमा / ७-क्रूरतमः / ८-तृ दिवा० प० /