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________________ ( 41 ) गणना होगी। ८-'हजारों कुलनारियाँ भारत की स्वतन्त्रता के लिये हँसती हँसती जेल में गई। ६–मेरे पास चार हजार पन्द्रह स्वर्ण मुद्रायें हैं और मेरे भाई के पास एक हजार पन्द्रह / १०-दो कोड़ी बर्तन कलई कराये गये और इसपर साढे पाँच रुपये खर्च आये। संकेत-१-अस्यां श्रेण्यामेकषष्टिश् छात्राः / विशति से नव नवति तक के संख्यावचन स्त्रीलिङ्ग हैं और एकवचन में प्रयुक्त होते हैं, संख्येय का लिङ्ग और वचन चाहे कुछ भी हो। २-अष्टाचत्वारिंशता सम्पिण्डिता ( संहिता, युता, संकलिता ) द्वात्रिंशदशीतिर्भवति / दशशताद् व्यवलितायां (वियुतायां, शोधितायाम् ) पञ्चाशति षष्टिरवशिष्यते ( षष्टिरुर्वरिता भवति ) दशशतम् = दशाधिकं शतम् = एक सौ दस / न कि दस सौ। यदि दस सौ कहना हो तो समास के रूप में 'दशशती' कहना पड़ेगा और समास न करते हुए 'दश. शतानि'। इसी प्रकार पञ्चदशसहस्रम् = एक हजार पन्द्रह / दशान्त से 'ड' तद्धित करके एकादशं शतम्, एकादशं सहस्रम् (111, 1011) ऐसा भी कह सकते हैं / केवल 'दशन्' से 'ड' नहीं होता / 'तदस्मिन्नधिमिति दशान्ता डः' (5 / 2 / 65) / ३-दश सहस्राणि पञ्च शतानि द्विष्टिं चाष्टाभिः शतैश्चतुष्पञ्चाशता च हि (गुरणय)। इस अर्थ में अभि-अस का प्रयोग इस प्रकार होता है'प्रयुतं दशकृत्वोऽभ्यस्तं नियुतं भवति' [ निरुक्त ], अयुत को दस गुणा किया जाय तो नियुत हो जाता है / ६-मम चत्वारि सहस्राणि पञ्चदश च स्वर्णमुद्राः सन्ति [ मम पञ्चदशाधिकानि चत्वारि स्वर्णमुद्रासहस्राणि सन्ति ] / ५-विक्रमवत्सराणां चतुरुत्तरे सहस्रद्वये [गते] [विक्रमतश्चतुरुत्तरयोद्वयोवर्षसहस्रयोर्गतयोः] शताब्दीविलुप्तं भरतवर्षस्वातन्त्र्यं प्रतिलब्धम् / यहाँ समास करके चतुरुत्तरद्वसहस्रतमे [ विक्रमवत्सरे ] नहीं कह सकते। ७-विभक्तेरूर्वमत्र देशे पञ्चत्रिंशत् कोटयो जनाः / पञ्चत्रिंशत् कोटयो वा जातानाम् / एकोनपञ्चाशदुत्तरनवशत्युत्तरसहस्रतमे खिस्ताब्दे [ . उत्तरे खिस्ताब्दसहस्र गते ] भूयो जनसंख्यानं भविता। यहाँ प्रायः ०नवशतोत्तर० ऐसा प्रयोग करते हैं, सो निश्चय ही प्रमाद है। कारण कि अकारान्तोत्तरपद समाहार द्विगु होने र द्विगो: (4 / 2 / 22) से ङीप अपरिहार्य है। १०-द्व विशती पात्राणां त्रपुलेतं लम्भिते। यह विशति' 'संख्या मात्र' में व्यवहृत हुमा है, संख्येय में नहीं। अतः प्रर्थ के अनुसार द्विवचन में भी प्रयुक्त हुआ। इसी प्रकार बहु० में भी प्रयोग होगा-तिस्रो विंशतयः पात्राणाम् इत्यादि / 1-1 सहस्नाणि कुलाङ्गना:, कुलाङ्गनासहस्राणि, सहस्रशः कुलाङ्गनाः / 'परस्सहस्राः' का यहाँ प्रयोग उचित न होगा, क्योंकि इसका अर्थ 'एक हजार से ऊपर' है, 'हजारों नहीं।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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