________________ ( 37 ) लिये अधिक धबद (सायत) / ६-पाप (एनस् ) स्वीकार कर लिया जाय तो यह हल्का (कनीयस) हो जाता है-ऐसी भूति है, पाप छिपाया जाय तो बढ़ता है ऐसा दूसरे शास्त्रकार कहते हैं। ७-*हे प्रभो ! तेरी महिमा (मोहमन् पुं०) को गाकर जो हम ठहर जाते हैं वह इस लिये नहीं कि तेरे गुरण इतने ही हैं, किन्तु हम अशक्त हैं अथवा हम थक जाते हैं / ८बहुत बार (भूपसा) देखा गया है कि सम्पत्ति से दर्प आ जाता है / विनीत पुरुष भी अविनीत हो जाते हैं / ६-शत्रुओं (द्विष) के वचनों में विश्वास न करें। वे अवसर पाकर अवश्य धोखा देंगे। १०-यह बेल (अनह) के लिये कुछ भार नहीं, यह तो लादे हुए (माहित) बड़े गड्डे को आसानी से खींच सकता है / ११--पुराने आर्य मूंज की जूती (उपानह स्त्री०) पहनते थे, क्योंकि वे चाम को अपात्र मानते थे। काश्मीर के श्रमी लोग आज भी इस का उपयोग करते हैं / १२-इस बरस बरसात (प्रावृष् स्त्री०) में नदियों में बाढ़ आ जाने से सैकड़ों गाँ बह गये और लाखों मनुष्य बेघर हो गये। १३-पाज' आकाश में मामली से बादल है', इस लिये हल्की सी धूप है / १४—यह बड़ा भवन नाम के मुखिया (स्थायुक) का है। इसके आने जाने के लिये तीन दरवाजे (द्वार स्त्री०) हैं / १५-मनुष्य मरण शील (मरणधर्मन्) हैं / ऋषि, मुनि, यति, तपस्वी, ब्रह्मचारी और गृहस्थ सभी को काल के गाल में जाना है / १६-हम प्रायः बाहिर की ओर देखते हैं अपने भीतर नहीं / ब्रह्मा ने इन्द्रियों के गोलक बाहर की ओर खुलने वाले ही तो काटे हैं। १७-बरसात में सिन्धु नदी का पाट इतना चौड़ा हो जाता है कि यह समुद्र सी प्रतीत होती है। संकेत-१-हरि र्षीया नीतिवि दः संगरस्य प्रतिभयाः परिणतीवि द्वांसोऽपि (भीतिदाननुबन्धान् विजानन्तोऽपि) तृतीयस्मै विश्वव्यापिने युद्धाय संभारान्कुर्वन्ति / उन्मत्तभूतं जगदिति प्रतिभाति / ३-सर्वाणि श्रेयांस्यविजग्मुषस्ते का नामाशीः प्रयोज्या / तथापीदमाशास्महे चिरं धर्मेण प्रजा पालयन्भूयाः / ६न द्विषः प्रत्ययं गच्छेत् / १२-अस्मिन्नन्दे प्रावृषि नदीनामाप्लावेन शतशो ग्रामाः परिवाहिताः, लक्षशश्च जना अनिकेतनाः संवृत्ताः / २६-पराग्दृशो यं न प्रत्यादृशः / २७--वर्मासु सिन्धोर्नद्याः पात्रं तथा रीयो भवति यथैषा जलधिमनुहति / 1-1 निगुह्यभानमेनो विवर्धते / यहाँ गुरु की उपधा को दी नहीं होता २-२अद्याभ्रविलिप्ती द्यौः /