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________________ ( 8 ) में सब से अधिक पवित्र थे, इनके जन्म से दशरथ और जनक के वंश ही कृतार्थ नहीं हुए, तीनों लोक भी। ३-दिलीप और उसकी रानी सुदक्षिणा नन्दिनी गौ के बड़े भक्त थे। चाहे दिन हो या रात'ये इसकी सेवा में लगे रहते थे / ४-काम और क्रोध मनुष्य के 'आन्तरिक महाशत्रु हैं, 'कल्याण चाहने पाले बुद्धिमान् को इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये / ५-देवदत्त और उसकी बहिन पढ़ाई से ऊब गये हैं, लाख यत्न करने से भी इनका मन पढ़ाई में नहीं लगाया जा सकता / ६-प्रमाद और आलस्य विनाशकारी हैं। दोनों ही लोकयात्रा के विरोधी हैं / ७-दानशीलता, दया और क्षमा मनुष्य को सबका प्यारा बना देते हैं। इन गुणों को देवी सम्पत्ति कहते हैं। ८-निद्रा और भय प्राणियों का समान धर्म है और अभ्यास और वैराग्य से इन्हें कम किया जा सकता है / ६-बड़े हर्ष की बात है कि यह वही दीर्घबाहु अञ्जना का पुत्र है, जिसके पराक्रम से हम और सभी लोग कृतार्थ हुए / १०-मुझे व्याकरण और मीमांसा दोनों रुचिकर हैं,अर्थशास्त्र में मुझे थोड़ी ही रुचि है / संकेत-यहाँ ऐसे वाक्य दिये गये हैं जिनमें उद्देश्य अनेक हैं, पर विधेय एक है। उद्देश्य जब भिन्न 2 लिङ्गों के हों तो विधेय का क्या लिङ्ग होना चाहिये, यह व्यवरथा करनी है। दूसरे वाक्य में राम और सीता दो उद्देश्य है, एक पुल्लिङ्ग और दूसरा स्त्रीलिङ्ग। इस अवस्था में विधेय पुल्लिङ्ग होगा। वचन के विषय में कोई सन्देह नहीं। रामः सीता च प्राणिनां पवित्रतमी / एनयोर्जन्मना न केवलं जनकदशरथयोः कुले कृतिनी संजाते, त्रीणि भुवनान्यपि ( कृतीनि संजातानि)। ५-देवदत्तस्तस्य भगिनी च पर्यध्ययनौ (अध्ययनाय परिग्लानौ ), यत्नशतेनापि न शक्यमनयोर्मन: पठने प्रसअयितुम् / 'लाख यत्न करने से' इत्यादि स्थलों में संस्कृत में 'शत' का प्रयोग शिष्ट-संमत है। शत का यहां अनन्त अर्थ है / ८-निद्रा भयं च प्राणिनां साधारणे / एते अभ्यास १-१दिवा वा नक्तं वा। 2 ग्रान्तर, अन्तस्थ, अन्तःस्थ('खपरे शरि विसर्गलोपो वा वाच्यः' )-वि०। संस्कृत में आन्तरिक आभ्यन्तरिक शब्द नहीं मिलते / ३-शिव, कल्याण, भव्य, भावुक, भविक-नपु० / 4-4 उभे लोकयात्राया विरोधिनी। यहाँ नपुसक उद्देश्य के अनुसार विधेय का लिङ्ग होता है / 'उभे' सर्वनाम भी नपु० द्विवचन है / ५–'जनक' पल्पान्तर है, अतः समास में इसका पूर्व निपात हुआ।
SR No.032858
Book TitleAnuvad Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharudev Shastri
PublisherMotilal Banarsidass Pvt Ltd
Publication Year1989
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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